श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
त्र्यधिकशततम: सर्ग:
श्रीराम आदि का विलाप, पिता के लिए जलांजलि दान, पिंड दान और रोदन
पिता की मृत्यु की बात सुनी जब, हुए अचेत तब श्रीराम
करूणाजनक बात थी ऐसी, लगी हृदय पर वज्र समान
मन को प्रिय न लगने वाले, उस वाग् वज्र को सुना राम ने
दोनों हाथ उठाकर ऊपर, गिरे भूमि पर कटे वृक्ष से
क्लान्त हुए गज से लगते थे, गिरे हुए धरती पर दुःख से
दुर्बल हुए शोक के कारण, घेर लिया सभी भाइयों ने
दीन वाणी में अश्रु बहाते, किया आरंभ करुण विलाप
महाराज को जान दिवंगत, धर्मयुक्त फिर कही यह बात
स्वर्ग गमन कर गये पिता जब, करूँगा क्या अयोध्या जाकर
मेरे कारण ही हुआ यह, दाह संस्कार भी कहाँ सका कर
तुम कृतार्थ हो निष्पाप भरत, तुमने सब संस्कार किए हैं
हुआ हीन नगर राजा से, जन आकुल व अस्वस्थ हुए हैं
वनवास पूर्ण होने पर भी, नहीं शेष उत्साह हृदय में
लौट अयोध्या कब जाऊँगा, नहीं बची लालसा मन में
कौन बढ़ाएगा उत्साह, कौन मुझे उपदेश करेगा
कानों को सुख देने वाली, करते थे जो बातें पिता
भरत से ऐसा कह श्रीराम, सुंदर सीता से यह बोले
श्वसुर चल बसे हैं तुम्हारे, लक्ष्मण तुम पितृहीन हो गये
देकर सांत्वना दुखी राम को, कहा सबने जलांजलि दें
समाचार सुन अश्रु भर आए, सीताजी के नेत्रों में
रोती हुई प्रिय पत्नी को, सांत्वना दे लक्ष्मण से कहा
जलदान देने हित लाओ, उत्तरीय, इंगुदि का फल पिसा
चलें आगे सीता फिर लक्ष्मण, सबके अंत में मैं चलूँगा
शोक काल की यह परिपाटी, है अत्यंत दारुण यह प्रथा
तत्पश्चात् धैर्य बँधाकर, ले चले सुमंत्र सहारा देकर
कठिनाई से पहुँचे वे सब, मंदाकिनी नदी के तट पर
गतिमय, उत्तम घाट हैं जिसके, पंक रहित रमणीय नदी पर
जल प्रदान किया राजा को, दक्षिण दिशा में अंजलि भरकर
बहुत सुंदर!
ReplyDeleteआद्र करती अभिव्यक्ति।
स्वागत व आभार कुसुम जी !
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ReplyDeleteराम की पितृ व्यथा का मार्मिक चित्रण श्रद्धा सुमन पर अनिताजी की कलम से।
स्वागत व आभार, बाल्मीकि रामायण है यह, मैंने केवल प्रस्तुत की है
Deleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति, मन को छूती हुई
ReplyDeleteस्वागत व आभार भारती जी !
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