Monday, March 30, 2020

भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः

श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

सप्ताशीतितिमः सर्गः

भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुखी होना, होश में आने पर भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना और गुह का उन्हें सब बातें बताना 

जटा धारण के विषय में जब, गुह के वचन सुने भरत ने
श्रीराम ने जटा भी रख ली, सोचा अब शायद ही लौटें

सुकुमार होने के साथ ही, बलशाली भी अति भरत थे 
बड़ी भुजाएं, नयन विशाल, सिंह समान कंधे थे उनके 

धैर्य धारण किया कुछ पल तक, सुनकर भरत ने गुह की बात 
अंकुश - बिद्ध हुए गज सम फिर,  हुए मूर्छित पाकर आघात 

गुह के चेहरे का रंग उड़ा, मूर्छित हुआ देख भरत को 
भूकम्प में मथित वृक्ष सम,  हो उठा था अतीव व्यथित जो

शत्रुघ्न बैठे थे निकट ही,  भरत को हृदय से लगाया 
सुध-बुध वह भी खो बैठे अब, पीड़ित होकर शोक मनाया 

माताएँ भी वहाँ आ पहुँचीं, दुर्बल और दीन लगती थीं 
पतिवियोग के दुःख से पीड़ित, उपवास से दुर्बल हुई थीं 

घेर लिया भरत को सबने, भूमि पर जो पड़े हुए थे 
कौसल्या हुईं अति कातर, लिया भरत को निज गोद में 

जैसे कोई गाय वत्सला, निज बछड़े को गले लगाती 
शोक से आकुल तपस्विनी ने, रोते हुए बात यह पूछी 

रोग तो कोई नहीं सताता, कहो पुत्र, तुम्हारे तन को  
अब इस राजवंश का जीवन, है अधीन तुम्हारे ही तो 

तुम्हें देखकर ही जीती हूँ, राम-लक्ष्मण गए हैं वन को 
स्वर्गवासी हुए महाराजा, रक्षक एक तुम्हीं तो हो 

सत्य कहो क्या तुमने कोई, अप्रिय बात सुनी है कोई 
लक्ष्मण के बारे में या फिर, सीता संग वन गए राम की 

दो घड़ी में स्वस्थ हुआ चित्त, कहा भरत ने रोकर माँ से 
नहीं सुनी ऐसी कोई बात, पूछा फिर निषादराज से 

उस दिन, रात कहाँ ठहरे थे, भाई राम, लक्ष्मण व सीता 
कैसा था बिछौना उनका, क्या भोजन में ग्रहण किया था 

हुआ प्रसन्न प्रश्न सुन ऐसे, गुह ने सारी बात सुनायी 
कैसे राम के आने पर, भांति-भांति सामग्री पहुँचाई

सत्य पराक्रमी श्रीराम ने, सभी वस्तुएं स्वीकारी थीं 
किन्तु स्मरण कर क्षत्रिय धर्म का, ग्रहण नहीं कर लौटा दी थीं   

फिर उन महात्मा राम ने, हम सब को यह समझाया था 
हमें किसी से कुछ नहीं लेना, अपितु सदा देना ही आता 

सीता सहित श्रीरामचन्द्र ने, उस रात उपवास ही किया 
लक्ष्मण जो जल ले आये थे, केवल उस जल को ही पीया

ग्रहण किया तब शेष बचा जल, लक्ष्मण ने उपासना करके 
सन्ध्योपासना भी की थी, एकाग्रचित्त से उन तीनों ने 

सुंदर एक बिछौना बनाया, कुश लाकर तब लक्ष्मण ने
सीता सहित राम विराजे, चरण पखारे उन दोनों के 

यही इंगुंदी वृक्ष की जड़ है, यही  बिछौने का तृण है 
जहाँ किया था शयन उस रात, राम और सीता दोनों ने 

भरे हुए बाणों से तरकस, बाँध पीठ पर वीर लक्ष्मण 
अँगुलियों  में दस्ताने पहने, पहरा देते रहे रात भर 

मैं भी धनुष-तीर लेकर तब, लक्ष्मण संग आ खड़ा हुआ 
निद्रा व आलस्य त्याग जो, थे सावधान, मैं जगा रहा 

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में सतासीवाँ सर्ग पूरा हुआ.

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