Tuesday, July 26, 2016

पुरवासियों को सोते छोड़कर वन की ओर जाना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

षट्चत्वारिंशः सर्गः

सीता और लक्ष्मण सहित हरिराम का रात्रि में तमसा तट पर निवास, माता-पिता और अयोध्या के लिए चिंता तथा पुरवासियों को सोते छोड़कर वन की ओर जाना


सावधान हो आप, सौम्य ! रें सुरक्षा अश्वों की
बांध दिया उन्हें लाकर, दिया सुमन्त्र ने चारा भी

संध्या की उपासना करके, शयन योग्य स्थान चुना
लक्ष्मण और सुमन्त्र ने मिलकर, पत्तों से तब उसे ढका

शय्या बनी देख तट पर, थके राम व सीता सोये
उनके नाना गुणों का वर्णन, लक्ष्मण तब करने लगे

संग सुमन्त्र के रहे जागते, चर्चा करते बीती रात
इतने में ही राम उठ गये, आने को ही था प्रभात

वृक्षों की जड़ों से सटकर, सोते देख प्रजाजनों को
भाई से तब कहा राम ने, देखो, तुम पुरवासियों को  

चाह इन्हें हमारी केवल, घर-बार भी नहीं याद है
लौटा ले चलने को आतुर, निश्चय इनका अति अटल है

जब तक ये सब जन सो रहे, शीघ्र ही हम बढ़ जाएँ आगे
नहीं रहेगा भय फिर हमको, पीछे आने का किसी के

निकल चलेंगे जब यहाँ से, इन्हें न भू पर सोना होगा
अनुरागी हैं हम लोगों के, ऐसा दुःख फिर न होगा

राजकुमारों का कर्त्तव्य, दुःख हर लें वे प्रजाजनों के
न कि दुःख देकर अपने, उन्हें और दुखी बना दें

यह सुनकर बोले लक्ष्मण, सही कह रहे आर्य आप
ले आए सुमन्त्र तब रथ को, तीनों ने की तमसा पार

जा पहुंचे तब ऐसे पथ पर, कंटरहित था भय रहित भी
पुरवासी न उन्हें पा सकें, यह सुमन्त्र से बात कही

हमें यहीं उतार कर आप, पहले उत्तर दिशा को जाएँ
फिर दूसरे मार्ग से जाकर, पुनः यहीं रथ लौटा लायें

वैसा ही किया सुमन्त्र ने, लौटा लाये वह रथ को
तब उस पर आसीन हुए, जा पहुंचे तपोवन को


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में छियालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ.


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