Monday, October 19, 2015

सुमन्त्र का राजा की आज्ञा से श्रीराम को बुलाने के लिए उनके महल में जाना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

पंचदशः सर्गः

सुमन्त्र का राजा की आज्ञा से श्रीराम को बुलाने के लिए उनके महल में जाना 

सोने के फूलों के मध्य, ज्यों पिरोई गई हों मणियाँ
चन्दन व अगर की गंध थी, सुंदर सजी हुई मूर्तियाँ

कलरव करते सारस पक्षी, भव्य इंद्र के भवन समान
मेरु पर्वत का शिखर ज्यों, शोभित होता सुंदर धाम

जनपदवासी पहुंच गये थे, उत्सव हेतु थे उत्कण्ठित
दीवारों में रत्न जड़े थे, भीड़ से होता था सुसज्जित

रथ में बैठ सुमन्त्र वहाँ गये, हर्ष के कारण थे रोमांचित
लाँघ अनेकों ड्योढ़ियों को, अंतः पुर तक हुए उपस्थित

हर्ष भरी बातें करते थे, वहाँ खड़े जो सेवकगण थे
शत्रुन्जय विशाल गजराज, जैसा नाम वैसे गुण थे

राजा के जो परम प्रिय थे, मंत्री गण भी आये मिलने
किया प्रवेश सुमन्त्र ने भीतर, एक ओर करके उन्हें

जैसे जाये मगर सागर में, वैसे ही सुमन्त्र गये भीतर
पर्वत शिखर पर मेघ हो जैसे, महल अत्यधिक था सुंदर  



इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में पन्द्रहवाँ सर्ग पूरा हुआ. 

5 comments:

  1. जय श्री राम....

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  2. अति सुंदर....

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  3. स्वागत व बहुत बहुत आभार !

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  4. बहुत सुन्दर
    जय सियाराम !

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  5. स्वागत व आभार कविता जी

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