Thursday, June 25, 2015

राजा दशरथ द्वारा श्रीराम के राज्याभिषेक का प्रस्ताव तथा सभासदों द्वारा श्रीराम के गुणों का वर्णन करते हुए उक्त प्रस्ताव का समर्थन

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

द्वितीय सर्गः
राजा दशरथ द्वारा श्रीराम के राज्याभिषेक का प्रस्ताव तथा सभासदों द्वारा श्रीराम के गुणों का वर्णन करते हुए उक्त प्रस्ताव का समर्थन

राजसभा में जो बैठे थे, उन्हें कही राजा ने बात
मेघ समान शब्द थे उनके, हितकारक, सुखमय संवाद  

राजोचित था स्वर गम्भीर, सभी नरेशों से वे बोले
पुत्र की भांति प्रजा हमारी, आप सभी परिचित हैं इससे

सभी पूर्वज मेरे कुल के, पालन करते थे जिनका
मैंने भी अपनी शक्ति भर, भार उठाया है उनका

हित साधते सदा प्रजा का, वृद्ध हुआ विश्राम चाहता
वर्ष हजारों हुए राज्य को, श्रीराम को इसे सौंपता

मुझसे भी यह श्रेष्ठ अति हैं, बल में इंद्र समान ही जानें
कार्यकुशल, पुरुष शिरोमणि, कल युवराज के पद को पायें  

परम सनाथ त्रिलोकी होगी, श्रीराम कल्याण स्वरूप
राज्य भार इन्हें सौंपकर, पा जाऊंगा मैं सारे सुख  

यह प्रस्ताव कहें, कैसा है, यदि सही, अनुमति दें इसकी
हितकर यदि अन्य बात है, कहें भूमिका मुझसे उसकी

राजा ने जब कहा कथन यह, किया नरेशों ने अभिनन्दन
 मोर मधुर केका रव से ज्यों, महामेघ का करते वन्दन

जनसमुदाय की अगले क्षण, हर्ष भरी वाणी दी सुनाई
इतनी प्रबल ध्वनि थी उसकी, पृथ्वी को कंपाती आई

धर्म और अर्थ के ज्ञाता, राजा का अभिप्राय जानकर
जनपद के प्रतिनिधि मिल बैठे, पहुंचे थे एक निश्चय पर

राजन ! आप वृद्ध हुए हैं, राम का ही अभिषेक करें
रघुकुल वीर महा बलवान, श्वेत छत्र धारण करें

प्रिय थी उनकी बात किन्तु, अनजान बन राजा बोले
संशय होता है यह सुनकर, इसका आप ही उत्तर दें

धर्मपूर्वक इस धरती का, मैं पालन करता आया
मेरे रहते श्रीराम को, क्यों राज्य योग्य पाया

सुनकर वे प्रतिनिधि यह बोले, श्रीराम सद्गुण की खान
देव तुल्य मेधावी हैं वे, सुनिए आप उनका बखान

इक्ष्वाकु कुल में श्रेष्ठ हैं, सत्य पराक्रमी इंद्र समान
दिव्य गुणों से सम्पन्न हैं ये, धर्म, अर्थ का रखते ज्ञान

शशि समान सदा सुख देते, हैं धरा समान धैर्यवान
बुद्धि में बृहस्पति जैसे, बल शक्ति में इंद्र समान

सत्य प्रतिज्ञ, शीलवान हैं, मृदुभाषी जितेन्द्रिय भी
रहित असूया, स्थिर बुद्धि, बहुश्रुत, सत्यवादी भी

विद्वानों का संग वे करते, ब्राह्मणों के उपासक हैं
अनुपम कीर्ति, तेज बढ़ रहा, विद्याओं के ज्ञाता हैं

अस्त्रों का सम्पूर्ण ज्ञान है, सांग वेद के भी ज्ञाता
संगीत में निष्णात भी, पायी है उर की उदारता

सदा विजय ही पाते रण में, पुरवासी प्रिय हैं उनके
प्रजा सुख आनन्दित करता, उनके दुःख से पीड़ित होते

पहले बात शुरू करते हैं, सदा धर्म का आश्रय लेते  
कल्याण की बात सदा कर, निंदनीय चर्चा न करते

उत्तम युक्ति देते सबको, साक्षात् विष्णु की भांति
सुंदर भौहें, नेत्र विशाल, जिनमें हैं लालिमा छायी

राग-द्वेष से दूर ही रहते, लोकों को आनन्दित करते
पृथ्वी की तो बात ही क्या है, त्रिलोकी की रक्षा कर सकते

प्राणदण्ड के अधिकारी जो, उनका वध निशंक हो करते
जो अवध्य हैं शास्त्र दृष्टि से, कुपित नहीं उन पर होते

सद्गुणों से वैसे ही शोभित, जैसे रवि किरणों से सज्जित
ऐसे महाबली राम को, प्रजा चाहती है, हो पुलकित

है सौभाग्य हमारा जिससे, श्रीराम समर्थ अब बने
मरीचि सुत कश्यप की भांति, हैं पूर्ण वे सभी गुणों से

देव, असुर, मानव, गन्धर्व, नाग सहित हर वर्ग के जन
आने-जाने वाले सब ही, उनके हित करते हैं अर्चन

वृद्धा और युवतियां सारी, सुबह शाम विनती करतीं हैं
राम बनें युवराज शीघ्र ही, देवों से यही कहती हैं

पूर्ण करें अब उनकी विनती, श्रीराम युवराज बनें अब
नीलकमल सम श्याम कांतिमय, ज्येष्ठ पुत्र राम समर्थ

 महाराज ! इसी में हित है, राज्यभिषेक हो श्रीराम का
सबके हित में रहने वाले, सर्व प्रिय उन राजपुत्र का


 इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में दूसरा सर्ग पूरा हुआ.



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