श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
पञ्चम: सर्ग:
श्रीराम, लक्ष्मण और सीताका शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर जाना,
देवताओं का दर्शन करना
और मुनि से सम्मानित होना तथा शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन
वध कर बलशाली विराध का, सीता को ह्रदय से लगाया
सांत्वना दी राम ने उनको, लक्ष्मण को यह वचन सुनाया
कठिन वन अति कष्टकारी है, ऐसे वन में नहीं रहे हैं
अब चलें निकट शरभङ्ग मुनि के, तप से शुद्ध देव तुल्य हैं
मुनि के आश्रम जब वे पहुँचे, अद्भुत दृश्य राम ने देखा
आसमान में रथ पर बैठे, दर्शन पाया इंद्र देव का
सूर्य और अग्नि के समान थी, इंद्र देव की अंगकान्ति
उनके पीछे अन्य देव थे, निर्मल वस्त्र, आभूषण धारी
उन जैसे ही कई महात्मा, इंद्रदेव की पूजा करते
निकट से उस रथ को देखा, हरे रंग के घोड़े जुते थे
श्वेत बादलों सा उज्ज्वल, निर्मल छत्र भी तना हुआ था
विचित्र पुष्पहार से शोभित, सूर्य समान प्रतीत होता था
सुवर्णमय डंडे वाले दो, चंवर और व्यजन भी देखे
जिनको लेकर दो सुन्दरियाँ, डुला रहीं थीं शुभ मस्तक पे
कई गंधर्व, देव, सिद्ध संग, महर्षि गण उत्तम वचन से
इन्द्रदेव की स्तुति करते, जो मुनि से वार्तालाप कर रहे
इस प्रकार इंद्र दर्शन कर, उसे दिखाने हेतु भाई को
श्रीराम ने अपनी उँगली से, संकेत किया उस ओर को
आकाश में अद्भुत रथ देखो, अग्नि लपटें निकल रही हैं
शोभा मानो मूर्तिमती हो, उसकी नित सेवा करती है
उनके दिव्य अश्वों के विषय में, जैसा हमने सुन रखा है
निश्चय ही नभ में वैसे ही, दिव्य अश्व विराजमान हैं