Friday, February 4, 2011

नृत्य करती है आत्मा


नृत्य करती है आत्मा

कृष्ण की वंशी बजी
थिरक उठीं थी गोपियाँ,
तुम्हारे भीतर से फूटता है संगीत
तो नृत्य करती है आत्मा !

जब जगाया प्रज्ञा को
जड़ता से मुक्त किया
दिशाहीन सा था जो जीवन
दिशाबोध उसे दिया !

इधर-उधर बिखरा मन
समेटा, सहेजा, संवारा उसे
कण-कण में व्याप्त
चैतन्य से मिला निखारा उसे !

अनिता निहालानी
४ फरवरी २०११


3 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।


    मेरे नये ब्‍लाग आत्‍म‍-चिंतन पर आपके विचारों का स्‍वागत है ।

    http://aatamchintanhamara.blogspot.com/

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  2. जब जगाया प्रज्ञा को
    जड़ता से मुक्त किया
    दिशाहीन सा था जो जीवन
    दिशाबोध उसे दिया

    आद.अनीता जी,
    बहुत सुन्दर लिखा है आपने ,उसकी कृपा से ही सब संभव हुआ है

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  3. बहुत ही सुन्दर लिखा है...आभार.

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