Thursday, February 10, 2011

हौलौ एन्ड एम्प्टी


हौलौ एन्ड एम्प्टी

आज सचमुच मन खाली है
तन भी बांसुरी सा पोला
बेरोकटोक श्वास भीतर जाती है
रग-रग को छूकर वापस आ जाती है
उस स्पर्श में कुछ घटता है
बेधड़क उसकी वापसी भी
विश्रांति की फसल बो आती है !

मन को भी छूती है
और खाली मन श्वास बन 
सँग सँग उतरता है,
हर मोड़, हर पडाव पर
पल भर ठहरता है
फिर उठ जाता है ऊपर
......और ऊपर
जहाँ उजाला ही उजाला है
निकल आती है कोई पुरानी पहचान
कोई कृष्ण बन जाता है
कोई राधा,
फूलों के सागर हैं, घंटनाद हैं
पंछियों का कलरव है
हमारा खाली मन कितना सुंदर है !

अनिता निहालानी
११ फरवरी २०११

10 comments:

  1. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  2. बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|

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  3. आज सचमुच मन खाली है
    तन भी बांसुरी सा पोला
    दिल को छूती है यह पंक्तियाँ सुंदर रचना बधाई

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  4. फूलों के सागर हैं, घंटनाद हैं
    पंछियों का कलरव है
    हमारा खाली मन कितना सुंदर है !......

    सुन्दर और भावपूर्ण कविता । बधाई।

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  5. बहुत सुन्दर . . खाली मन, बांसुरी सा पोला तन .. वाह, नए धुन और साज़ से वाकिफ कराया, खूबसूरत !

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  6. मन का खालीपन ही तो सौंदर्य बोध कराता है, बेहतरीन प्रस्तुति!

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  7. रग-रग को छूकर वापस आ जाती है
    उस स्पर्श में कुछ घटता है
    बेधड़क उसकी वापसी भी
    विश्रांति की फसल बो आती है !.......

    एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...

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  8. फूलों के सागर हैं, घंटनाद हैं
    पंछियों का कलरव है
    हमारा खाली मन कितना सुंदर है !
    बहुत सुंदर रचना .बधाई

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  9. मन का खालीपन हमें खुद के बारे में विश्लेषण का अवसर देता है ..और जब हम उस खालीपन में अपने को करीब पाते हैं तो आनंद को महसूस करते हैं .....सार्थक रचना

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  10. आपने कितना सही कहा है खुद के करीब जाकर पहले विश्लेषण और फिर आनंद !

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