हौलौ एन्ड एम्प्टी
आज सचमुच मन खाली है
तन भी बांसुरी सा पोला
बेरोकटोक श्वास भीतर जाती है
रग-रग को छूकर वापस आ जाती है
उस स्पर्श में कुछ घटता है
बेधड़क उसकी वापसी भी
विश्रांति की फसल बो आती है !
मन को भी छूती है
और खाली मन श्वास बन
सँग सँग उतरता है,
हर मोड़, हर पडाव पर
पल भर ठहरता है
फिर उठ जाता है ऊपर
......और ऊपर
जहाँ उजाला ही उजाला है
निकल आती है कोई पुरानी पहचान
कोई कृष्ण बन जाता है
कोई राधा,
फूलों के सागर हैं, घंटनाद हैं
पंछियों का कलरव है
हमारा खाली मन कितना सुंदर है !
अनिता निहालानी
११ फरवरी २०११
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteआज सचमुच मन खाली है
ReplyDeleteतन भी बांसुरी सा पोला
दिल को छूती है यह पंक्तियाँ सुंदर रचना बधाई
फूलों के सागर हैं, घंटनाद हैं
ReplyDeleteपंछियों का कलरव है
हमारा खाली मन कितना सुंदर है !......
सुन्दर और भावपूर्ण कविता । बधाई।
बहुत सुन्दर . . खाली मन, बांसुरी सा पोला तन .. वाह, नए धुन और साज़ से वाकिफ कराया, खूबसूरत !
ReplyDeleteमन का खालीपन ही तो सौंदर्य बोध कराता है, बेहतरीन प्रस्तुति!
ReplyDeleteरग-रग को छूकर वापस आ जाती है
ReplyDeleteउस स्पर्श में कुछ घटता है
बेधड़क उसकी वापसी भी
विश्रांति की फसल बो आती है !.......
एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
फूलों के सागर हैं, घंटनाद हैं
ReplyDeleteपंछियों का कलरव है
हमारा खाली मन कितना सुंदर है !
बहुत सुंदर रचना .बधाई
मन का खालीपन हमें खुद के बारे में विश्लेषण का अवसर देता है ..और जब हम उस खालीपन में अपने को करीब पाते हैं तो आनंद को महसूस करते हैं .....सार्थक रचना
ReplyDeleteआपने कितना सही कहा है खुद के करीब जाकर पहले विश्लेषण और फिर आनंद !
ReplyDelete