नृत्य करती है आत्मा
कृष्ण की वंशी बजी
थिरक उठीं थी गोपियाँ,
तुम्हारे भीतर से फूटता है संगीत
तो नृत्य करती है आत्मा !
जब जगाया प्रज्ञा को
जड़ता से मुक्त किया
दिशाहीन सा था जो जीवन
दिशाबोध उसे दिया !
इधर-उधर बिखरा मन
समेटा, सहेजा, संवारा उसे
कण-कण में व्याप्त
चैतन्य से मिला निखारा उसे !
अनिता निहालानी
४ फरवरी २०११
बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमेरे नये ब्लाग आत्म-चिंतन पर आपके विचारों का स्वागत है ।
http://aatamchintanhamara.blogspot.com/
जब जगाया प्रज्ञा को
ReplyDeleteजड़ता से मुक्त किया
दिशाहीन सा था जो जीवन
दिशाबोध उसे दिया
आद.अनीता जी,
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ,उसकी कृपा से ही सब संभव हुआ है
बहुत ही सुन्दर लिखा है...आभार.
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