Monday, February 28, 2011

प्रभु, जीवन का राज खोल दो



प्रभु, जीवन का राज खोल दो


प्रभु, भीतर से द्वार खोल दो
सदियों से जो भटक रहे हैं,
उनके मन मंदिर में आकर
उजियाले की आस घोल दो !

यह जग अद्भुत भूल भुलैया
पग-पग पर संकट ने घेरा,
नहीं किसी को मिला मुक्कमल
रात कहीं तो कहीं सवेरा !

प्रभु, जीवन का राज खोल दो
जिसे खोजते आतुर प्राणी,
जिसको ढूँढ रही हैं ऑंखें
कहाँ हो तुम यह बात बोल दो !

बड़ी कठिन माया की माया
पार न कोई इसका पाया,
जोगी, जती, मुनि तक हारे
जप, तप चाहे लाख कमाया !

प्रभु, तुम्हारा नाम मोल दो
यह जग तुमसे ही चलता है
पर हम तुमको ढूँढ न पाए
जो अमोल है ज्ञान तोल दो !

अनिता निहालानी
२८ फरवरी २०११




2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना, आभार

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  2. पहली लाइन ने ही मन प्रसन्न कर दिया ! बढ़िया सरल अधिकार पूर्ण भाव के साथ आप अपनी बात कहने में कामयाब हैं ! शुभकामनायें !!

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