Wednesday, May 27, 2020

भरत और भरद्वाज मुनि की भेंट एवं बातचीत


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः

श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

नवतितम: सर्ग: 

भरत और भरद्वाज मुनि की भेंट एवं बातचीत तथा मुनि का अपने ही आश्रम पर ही ठहरने का आदेश देना 

धर्म ज्ञाता नरश्रेष्ठ भरत ने, निकट पहुँच कर आश्रम के
रुकने का आदेश दिया, सभी को आश्रम से कुछ पहले 

अस्त्र-शस्त्र उतार कर  रखे, राजोचित निज वस्त्र भी बदले 
दो रेशमी वस्त्र पहनकर, पैदल ही गए उनसे मिलने 

चले पुरोहित उनके आगे, मन्त्रीगण भी साथ गए थे 
देख दूर से मुनिवर को फिर, वसिष्ठ मुनि संग आगे गए 

मुनि भरद्वाज खड़े हो गए, 'लाओ अर्घ्य'  कहा शिष्यों से 
दोनों मुनिजन मिले आपस में, किया तब प्रणाम भरत ने 

महातेजस्वी मुनि समझ गए, दशरथ नन्दन भरत यह हैं 
कुल का कुशल-मंगल पूछा , अर्घ्य, पाद्य, फल देकर उनसे 

सेना, खजाना, मित्र सहित, मन्त्रिमण्डल का हाल जाना 
राजा मृत हैं उन्हें ज्ञात था, उनके विषय में कुछ न पूछा

मुनि वसिष्ठ व भरत ने भी तब, महर्षि की जानी कुशलता 
अग्निहोत्र, शिष्य, पशु, पौधे, समाचार सभी का ज्ञात किया 

‘सब ठीक है’ ऐसा कहकर, भरद्वाज मुनि भरत से बोले 
तुम अयोध्या के राजा हो, किस कारण यहाँ तुम आये 

शुद्ध नहीं है मेरा अंतर, तुम्हारे प्रति नहीं विश्वास 
तुम थे कारण राम गए वन, अब क्या और करोगे घात

दुःख से भरी भरत की आँखें, लड़खड़ा गयी थी वाणी भी 
आप भी यदि ऐसा कहते हैं, तब तो मैं बड़ा हतभागी 

निश्चित रूप से मुझे ज्ञात है, मेरा नहीं कोई अपराध 
नहीं कहें कठोर वचन ये, नहीं मानी माता की बात 

मैं तो उन पुरुष सिंह को, अयोध्या में ले जाने आया 
भगवन आप बताएं कहाँ, श्रीराम ने अब निवास बनाया 

भरत का कुछ अपराध नहीं है, वसिष्ठ आदि मुनियों ने कहा
प्रसन्न होकर तब भरद्वाज ने, उनको आशीर्वचन कहा 

तुम  रघुकुल में जन्मे हो, श्रेष्ठ पुरुषों का अनुसरण करते 
मुझे ज्ञात है भाव तुम्हारा, पूछा बस जिससे कीर्ति बढ़े 

श्रीरामचन्द्र तुम्हारे भ्राता, चित्रकूट पर्वत पर रहते 
आज यहीं विश्राम करो,  यात्रा करना कल तुम आगे

मेरी इस अभिलाषा को तुम, पूरा करने में  समर्थ हो 
'ऐसा ही हो' कहा भरत ने,मान लिया मुनि आज्ञा को 


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में नब्बेवाँ सर्ग पूरा हुआ.


Tuesday, May 19, 2020

भरत का सेनासहित गंगा पार करके भरद्वाज के आश्रम पर जाना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः

श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्


एकोननवतितम: सर्ग:
भरत का सेनासहित गंगा पार करके भरद्वाज के आश्रम पर जाना 

श्रृंगवेरपुर में गंगा तट पर, रात्रि बिताकर भरत जगे 
गुह को शीघ्र बुलाकर लाओ, शत्रुघ्न को उठाकर बोले 

श्रीराम का चिंतन करता था, सोया नहीं आपकी भांति 
कह रहे थे शत्रुघ्न भरत से, आ पहुँचा था तब गुह वहीं 

हाथ जोड़कर उनसे बोले, सुख से बीती आपकी रात ? 
सेना सहित रहे बिना कष्ट के,बन्धु सहित स्वस्थ हैं आप  

गुह के स्नेहिल वचन सुने जब, कहा भरत ने तब यह उससे 
सुख से बीती रात हमारी, बड़ा सत्कार किया आपने 

अब व्यवस्था करें कुछ ऐसी, मिलकर ये मल्लाह तुम्हारे 
बहुत सी नौकाएं लाकर, गंगा से हमको पार उतारें

भरत का यह आदेश सुना तो, जाकर बोला गुह नगर में 
नौकाओं को घाट पर लाओ, सेना को हम पर उतारें 

राजा की आज्ञा मानकर, मल्लाह सभी उठ खड़े हुए 
पांच सौ नौकाएं ले आये, कर एकत्र चारों ओर से 

स्वस्तिक के चिन्हों से अलंकृत, अति मजबूत नौकाएं भी थीं 
बड़ी-बड़ी घण्टियाँ लटकीं थी, पताकाएं फहराती थीं  

कल्याणमयी नाव गुह लाया, जिसमें बिछे श्वेत कालीन 
मांगलिक शब्द भी होता था, स्वस्तिक नाम वाली नाव  पर 

पहले पुरोहित व गुरु बैठे, तत्पश्चात भरत व शत्रुघ्न 
कौसल्या, सुमित्रा, कैकेयी, अन्य रानियां हुईं आसीन  

गाड़ियाँ व अन्य सामग्री, लादी गयीं अन्य नावों पर 
सैनिक निज सामान उठाते, करने लगे महान रौरव  

पताकाएं फहराती थीं, सब पर कुशल मल्लाह बैठे  
तीव्र गति से वे उन सबको, उस पार लेकर जा रहे थे 

 कुछ पर केवल स्त्रियां ही थीं, कुछ नौकाओं पर अश्व सवार
कुछ पर खच्चर, बैल लदे थे, कुछ रत्नों को ले जातीं पार

दूसरे तट पर पहुँचाकर, जब वे नावें लौट रही थीं 
प्रदर्शन करते थे गतियां, मल्लाह बंधु जल में उनकी 

वैजयंती पताकाओं से सजे, हाथी नदी पर करते थे 
पँखधारी पर्वतों के समान, उस समय वे प्रतीत होते थे 

कितने ही जन नावों पर थे, कितने बांस के बेड़ों पर थे 
कुछ  कलशों या घड़ों के द्वारा, कुछ तैर कर पार जाते थे 

इस प्रकार वह  पावन सेना, गंगा के उस पार उतर गयी 
 मैत्र नामक मुहूर्त में स्वयं, प्रयागवन की ओर बढ़ गयी 

वहाँ पहुँच कुमार भरत, विश्राम की आज्ञा सेना को दे 
ऋत्विज व राजसदस्यों संग, भरद्वाज के दर्शन हित गए 

देवपुरोहित भारद्वाज के, आश्रम पर भरत जी पहुँचे
दर्शन किये पर्णशाला सहित, रमणीय व विशाल वन के  

  इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में नवासीवाँ सर्ग पूरा हुआ.