जब भीतर छायी हो शांति की छाया
जब भीतर छायी हो शांति की छाया
तो कुछ नहीं बिगाड़ पाती माया,
उस छाया में अभिनव एकांत है
ठहरा मन उपवन प्रशांत है !
न कोई उहापोह न शेष कोई चाह
हरियाले जंगल में जैसे कोई राह,
छल छल छलकें सोते मधुजल के
बरस बरस बादल कृपा नेह ढलके !
जब भीतर छायी हो शांति की छाया
तो कुछ नहीं बिगाड़ पाती माया,
उस छाया में मौन मुखर उठता
कहीं वीणा तार कहीं मृदंग बजता !
अनुपम वह नाद अनोखा प्रकाश है
मिल जाये कोई जिसकी तलाश है,
ठहर ठहर श्वास कोई मंत्र हो गा रही
प्रकृति का हर रंग हर छटा लुभा रही !
अनिता निहालानी
१८ फरवरी २०११
जब भीतर छायी हो शांति की छाया
ReplyDeleteतो कुछ नहीं बिगाड़ पाती माया,
बहुत गहरी पते की बात लिखी है -
मनोहर अभिव्यक्ति .
जब भीतर छायी हो शांति की छाया
ReplyDeleteतो कुछ नहीं बिगाड़ पाती माया,
यह सत्य है .लेकिन इंसान को इसकी महता समझ नहीं आती ...सार्थक पोस्ट
बहुत सार्थक पोस्ट|धन्यवाद्|
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