Friday, February 18, 2011

जब भीतर छायी हो शांति की छाया





जब भीतर छायी हो शांति की छाया

जब भीतर छायी हो शांति की छाया
तो कुछ नहीं बिगाड़ पाती माया,
उस छाया में अभिनव एकांत है
ठहरा मन उपवन प्रशांत है !

न कोई उहापोह न शेष कोई चाह
हरियाले जंगल में जैसे कोई राह,
छल छल छलकें सोते मधुजल के
बरस बरस बादल कृपा नेह ढलके !

 जब भीतर छायी हो शांति की छाया
तो कुछ नहीं बिगाड़ पाती माया,
उस छाया में मौन मुखर उठता
कहीं वीणा तार कहीं मृदंग बजता !

अनुपम वह नाद अनोखा प्रकाश है
मिल जाये कोई जिसकी तलाश है,
ठहर ठहर श्वास कोई मंत्र हो गा रही
प्रकृति का हर रंग हर छटा लुभा रही !

अनिता निहालानी
१८ फरवरी २०११

3 comments:

  1. जब भीतर छायी हो शांति की छाया
    तो कुछ नहीं बिगाड़ पाती माया,

    बहुत गहरी पते की बात लिखी है -
    मनोहर अभिव्यक्ति .

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  2. जब भीतर छायी हो शांति की छाया
    तो कुछ नहीं बिगाड़ पाती माया,

    यह सत्य है .लेकिन इंसान को इसकी महता समझ नहीं आती ...सार्थक पोस्ट

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  3. बहुत सार्थक पोस्ट|धन्यवाद्|

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