Saturday, July 28, 2012

राजा दशरथ के शासनकाल में अयोध्या और वहाँ के नागरिकों की उत्तम स्थिति का वर्णन


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

पञ्चमः सर्गः

राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरी का वर्णन 


मतवाले सिंहों को वन के, व्याघ्रों व जंगली सूकर को
बाणों से हत करते कभी, आजमाते निज भुजा बल को

वेद सभी षट् अंग सहित, ज्ञात जिन्हें अग्निहोत्री ब्राह्मण
सदा पुरी को घेरे रहते, शम-दम आदि गुणों से सम्पन्न

दान सहस्त्रों का करते वे, सत्य स्थित ऋषि मुनि थे
महात्माओं से पुरी सुशोभित, दशरथ रक्षा करते थे

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड का पांचवा सर्ग पूरा हुआ.

षष्ठः सर्गः

राजा दशरथ के शासनकाल में अयोध्या और वहाँ के नागरिकों की उत्तम स्थिति का वर्णन

वेदों के विद्वान थे राजा, वस्तु उत्तम संग्रह करते 
दूरदर्शी, महा तेजस्वी, प्रिय थे प्रजा व जनपद के

इक्ष्वाकु कुल के अतिरथी, धर्म परायण व जितेन्द्रिय
 राजर्षि थे अति प्रसिद्ध, सम्पन्न उनमें गुण दिव्य

शत्रु हीन, युक्त मित्रों से, धनी इंद्र, कुबेर समान
प्रजापति मनु की भांति, प्रजा के रक्षक अति महान

धर्म, अर्थ, काम को साधें, ऐसे कर्म सदा ही करते
 अमरावती इंद्र से शासित, अयोध्या पर वे शासन करते

उस उत्तम नगरी के निवासी, बहुश्रुत, थे संतुष्ट सदा
धर्मात्मा व निर्लोभी भी, सत्यवादी, प्रसन्न सदा 


Wednesday, July 25, 2012

राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरी का वर्णन


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


पञ्चमः सर्गः

राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरी का वर्णन 


बड़े बड़े फाटक थे उसमें, पृथक-पृथक बाजार थे
सभी कलाओं के शिल्पी थे, अस्त्र-शस्त्र व यंत्र थे

स्तुति पाठ सूत करते थे, वंशावली सुनाते मागध
अतुलनीय सुषमा थी उसकी, ऊँचे भवनों पर थे ध्वज

 उद्यानों, उपवन से सज्जित, शतघ्नियों से रक्षित थी
साखू के वन घेर रहे थे, लंबी-चौड़ी अति विशाल थी

चारों ओर खुदी थी खाई, जिसे लांघना था दुर्गम
शत्रु के हित अति दुर्जय थी, उपयोगी पशुओं से पूर्ण

कर दाता नरेश आते थे, व्यापारी भी भिन्न देश के
स्त्रियों की नाटक मंडली, दिखलाती अभिनय नृत्य के

रत्नों से वे महल बने थे, पर्वत सम ऊँचे थे भवन
कूटागारों से परिपूर्ण, अमरावती सी होती शोभन
बड़ी विचित्र थी शोभा उसकी, महलों पर था जल स्वर्णिम
सतमहला प्रासाद थे उसमें, सुंदर नारियों से शोभित

आबादी भी घनी वहाँ की, समतल भूमि पर बसी थी
ईख समान मधुर जल वाली, धान के खेतों से भरी थी

भूमंडल पर सर्वोत्तम थी, मृदंग, वीणा वाद्य गूंजते
दुन्दुभी, पणव बजते थे, मानो सिद्धों के विमान थे

श्रेष्ठ पुरुष निवास करते थे, भीतर से भी घर सुंदर
दशरथ द्वारा थी पालित,  महारथी वीरों से सम्पन्न

जो अनाथ हो, भाग रहा हो, उन पर वार नहीं करते
लक्ष्य वेध करने में सक्षम, कुशल अस्त्र-शस्त्र चालन में

क्रमशः





Friday, July 20, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


पञ्चमः सर्गः

राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरी का वर्णन


कोशल नामका एक है जनपद, सरयू नदी के तट पर बसा
धन-धान्य से सम्पन्न सुखी, समृद्धिशाली, विशाल, बड़ा

उसी जनपद में नगरी एक, अयोध्या नाम से जग विख्यात
मनु महाराज ने जिसे बनवाया, बसाया था अपने ही हाथ

बारह योजन लंबी थी वह, चौड़ाई थी तीन योजन की
अन्य मार्गों से विभक्त था, राजमार्ग पर वृक्षावलियाँ थीं

पुरी की शोभा बढ़ी थी उससे, राजमार्ग पर बिछे थे पुष्प
विभाग पूर्वक बना था सुंदर, प्रतिदिन होता जल छिड़काव  

ज्यों इंद्र की अमरावती है, वैसे नृप दशरथ ने बसाई
धर्म, न्याय के बल से अपने, वृद्धि की थी महान राष्ट्र की



Friday, July 13, 2012

राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरी का वर्णन


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


चतुर्थ सर्ग

महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायण काव्य का निर्माण करके उसे लव-कुश को पढाना, मुनिमंडली में रामायण गान करके लव और कुश का प्रशंसित होना तथा अयोध्या में श्रीराम द्वारा सम्मानित हो उन दोनों का राम दरबार में रामायण गान सुनाना 

मंत्री व भाई भी वहीं थे, लवकुश का सम्मान किया
सुंदर रूपवान दोनों ने, मधुर काव्य का गान किया

सँग वीणा की लय के गाते, उच्च स्वर में राग अलापें
स्पष्ट बहुत था उच्चारण भी, सुन श्रोता हर्षित हो जावें

सुखद बहुत है इनका गायन, राम भाइयों को पुनः कहते
मुनि कुमार हैं दोनों तापस, कितनी मधुर रीति से गाते

मार्ग विधान का ले आश्रय, दोनों गाते थे रामायण
मगन हो गए राम सभा में, धीरे-धीरे सुन वह गायन

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बाल्काण्डे चतुर्थः सर्गः

पञ्चमः सर्गः

राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरी का वर्णन

प्रजापति मनु से लेकर, यह सारी पृथ्वी पूर्वकाल में
रहती आयी अधिकार में, राजाओं के जिस वंश में

जिन्होंने सागर को खुदवाया, साठ हजार पुत्र थे जिनके
उसी इक्ष्वाकुवंश की गाथा, महाप्रतापी सगर जिस कुल में

आदि से अंत तक हम दो, इस काव्य का गान करेंगे
दोष दृष्टि त्याग कर सुनिए, इससे चारों पुरुषार्थ सधेंगे

क्रमशः

Monday, July 9, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् चतुर्थ सर्ग


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

चतुर्थ सर्ग

महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायण काव्य का निर्माण करके उसे लव-कुश को पढाना, मुनिमंडली में रामायण गान करके लव और कुश का प्रशंसित होना तथा अयोध्या में श्रीराम द्वारा सम्मानित हो उन दोनों का राम दरबार में रामायण गान सुनाना

 इस प्रकार की अति प्रशंसा, हर्षित होकर महर्षियों ने
पाकर कई पुरस्कार वे, मधुर राग से गायन करते

दिया किसी ने कलश, वल्कल वस्त्र भी भेंट दिया 
मृगचर्म करे अर्पित कोई, यज्ञोपवीत प्रदान किया

एक कमंडल दे हो हर्षित, मुंज मेखला दी दूजे ने
आसन दिया एक मुनि ने, कौपीन भी दिया चौथे ने

कुठार, गेरुआ वस्त्र भी मिला, जटा बांधने की रस्सी दी
चीर भेंट में मिला उन्हें, समिधा हेतु भी डोरी दी

यज्ञ पात्र दिया हर्ष में, काष्ठभार भी किया समर्पित
गूलर की लकड़ी का पीढ़ा, ढेरों आशीषें की अर्पित

कल्याण हो तुम दोनों का, आयुष भी हो दीर्घ तुम्हारी
इस प्रकार अनेक मुनियों ने, शुभकामनाएँ  दे डाली
आश्चर्य मय काव्य यह अनुपम, कथा सुनाता है राम की
परवर्ती कवियों के हेतु, है आधारशिला काव्य की

मधुर स्वर से गाने वाले, काव्य मधुर पुष्टि देता है
राजकुमारों हो कुशल तुम, कर्ण और मन को मोहता है

एक बार वे गए अयोध्या, गलियों, सड़कों पर गाते थे
भरत के भाई राम ने देखा, सदा प्रशंसा जो पाते थे

घर बुलाया बन्धु जनों को, समुचित आदर-मान दिया
तत्पश्चात गए सभा में, सुवर्ण सिहांसन ग्रहण किया
 क्रमशः

Monday, July 2, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् चतुर्थ सर्ग


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
 



चतुर्थ सर्ग

महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायण काव्य का निर्माण करके उसे लव-कुश को पढाना, मुनिमंडली में रामायण गान करके लव और कुश का प्रशंसित होना तथा अयोध्या में श्रीराम द्वारा सम्मानित हो उन दोनों का राम दरबार में रामायण गान सुनाना 


मुनि ने देखा उनकी ओर, थे सुयोग्य वे, मन में जाना
सीता के चरित्र से युक्त, आरम्भ किया काव्य पढ़ाना

‘पौलस्त्य वध’ रखा था, उसका अन्य नाम विचार   
उत्तम व्रती मुनि थे वे, वेदार्थ का किया विस्तार

पाठ-गान में मधुर काव्य यह, द्रुत, मध्य, विलम्बित भी है
सप्त स्वरों से युक्त हुआ है, सँग वीणा के गा सकते हैं

श्रृगार, करूण, हास्य, रौद्र, भयानक रस से अनुप्राणित
महाकाव्य पढ़ करते गान, लव-कुश दोनों हो हर्षित

संगीत-शास्त्र के तत्वज्ञ, गन्धर्वों सम रूप था शोभन
स्थान व मूर्छना के ज्ञाता, मधुर स्वर से थे सम्पन्न

सुंदर रूप, शुभ लक्षण, उनकी सहज सम्पत्ति थे
दूजे युगल राम ही लगते, वार्तालाप मधुर करते थे

सबकी प्रशंसा के पात्र, जिह्वाग्र किया सम्पूर्ण काव्य
ऋषियों, साधुओं के समागम में, गाते थे रामायण काव्य

एक दिन महर्षि-मंडली में, गान किया मिल दोनों ने
हो हर्षित मुनि वे बोले, है अति माधुर्य इस गान में

यह घटनाएँ पहले हुई थीं, लगती हैं प्रत्यक्ष हो रहीं
सुंदर भाव, राग युक्त गायन, श्लोकों में मधुरता भी