Friday, April 26, 2013

राजा दशरथ का विश्वामित्र को अपना पुत्र देने से इंकार करना और विश्वामित्र का कुपित होना


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


विंश सर्गः

राजा दशरथ का विश्वामित्र को अपना पुत्र देने से इंकार करना और विश्वामित्र का कुपित होना
विश्वामित्र की बात सुनी जब, दो घड़ी तक रहे अचेत
दारुण दुःख झेला राजा ने, बोले होकर पुनः सचेत

सोलह वर्ष का नहीं हुआ है, कमलनयन राम है छोटा
राक्षस से युद्ध वह करे, नहीं है उसमें यह योग्यता

मेरे पास अक्षौहिणी सेना, जिसका पालक व स्वामी मैं
इस सेना को लिए साथ, युद्द करूँगा उनसे स्वयं मैं

शूरवीर सैनिक मेरे ये, अति कुशल, पराक्रमी भी
राक्षसों से युद्ध करेंगे, इनका जाना ही उचित भी

लिए हाथ में धनुष स्वयं मैं, युद्ध करूँगा निशाचरों से
जब तक देह में प्राण रहेंगे, यज्ञ की रक्षा होगी मुझसे

नियम आपका पूरा होगा, बिना किसी भी भय, बाधा के
राम को न ले जाएँ आप, मैं चलूँगा संग आपके

राम अभी बालक है छोटा, विद्या युद्ध की नहीं जानता
न ही अस्त्र चलाना, न ही, बलाबल शत्रु का जानता

नहीं योग्य है युद्ध कला के, राक्षस माया बड़ी जानते
राम वियोग मुझे है भारी, जीवित रहूँ न बिन इसके

बहुत हुई है आयु मेरी, कठिनाई से पायी सन्तान
यदि इसे ले जाना चाहें, सेना संग, मैं करूं प्रयाण

चारों पुत्रों में ज्येष्ठ राम, है उस पर प्रेम सर्वाधिक
हैं कौन वे निशाचर ?, किसके पुत्र व किससे रक्षित ?  

संग लिए अपनी सेना को, मायायोधी उन राक्षसों से
हे ब्रह्मन ! कहें आप ये, कैसे उनसे युद्ध करूं मैं





Wednesday, April 17, 2013

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्-उन्नीसवां सर्ग


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


एकोनविंशः सर्गः

विश्वामित्र के मुख से श्री राम को साथ ले जाने की बात सुनकर राजा दशरथ का दुखित एवं मूर्छित होना 

 हैं समर्थ निज दिव्य तेज से, नाश करेंगे उनका ये
सदा सुरक्षित रहेंगे मुझसे, प्रदान करुँगा इनको श्रेय

फैलेगी ख्याति पा श्रेय, तीनों लोकों में राम की
नहीं ठहर सकेंगे राक्षस, सम्मुख जब मृत्यु होगी

कोई नहीं दूसरा ऐसा, मार सके जो उन दोनों को
कालपाश के हुए अधीन, बल का बड़ा घमंड है उनको

पुत्र स्नेह को जरा भुला कर, सौंप उन्हें दें, हे भूपाल !
मरा हुआ ही उन्हें समझिए, पराक्रमी आपके लाल

महामुनि वशिष्ठ जानते, मैं भी जानता क्या हैं राम
उत्तम यश और धर्मलाभ हित, सौंप दीजिए मुझको आप

मंत्री गण वशिष्ठ मुनि संग, यदि आपको दें अनुमति
विदा कीजिये श्रीराम को, जो बड़े हुए, छूटी आसक्ति

दस दिन ही शेष रहे हैं, यज्ञ पूर्ण होने को आए
कमलनयन राम को दें, कहीं समय यह बीत न जाये

हो सर्वदा मंगल आपका, चिंता, शोक से मुक्त रहें
धर्म, अर्थ से युक्त वचन कह, विश्वामित्र चुप हो गए
  
हुआ दुःख अपार राजा को, पुत्रवियोग की आशंका से
हो भयभीत हुए मूर्छित, काँप उठे पीड़ित हो उससे

मुनि वचन जो शुभ था सुनकर, हृदय विदीर्ण हुआ राजा का
व्यथा हुई मन में भारी तब, हो विचलित आसन त्यागा


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में उन्नीसवाँ सर्ग पूरा हुआ.

  
  


Monday, April 8, 2013

विश्वामित्र के मुख से श्री राम को साथ ले जाने की बात सुनकर राजा दशरथ का दुखित एवं मूर्छित होना


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


एकोनविंशः सर्गः

विश्वामित्र के मुख से श्री राम को साथ ले जाने की बात सुनकर राजा दशरथ का दुखित एवं मूर्छित होना

नृपश्रेष्ठ राजा दशरथ का, अद्भुत, विस्तृत वचन सुना जब
हैं आपके योग्य वचन ये, पुलकित हुए मुनि बोले तब

कौन यहाँ उदार है इतना, आप महाकुल में जन्में हैं
गुरु आपके हैं वसिष्ठ जी, जो स्वयं ही ब्रह्मर्षि हैं 

मेरे उर की बात सुनें अब, सुनकर उसको पूर्ण करें
जो प्रतिज्ञा की है आपने, सत्य उसे कर के दिखलायें

सिद्धि हेतु अनुष्ठान कर रहा, उसमें बाधा बनें राक्षस
इच्छा से रूप धर लेते, शक्ति वान, बलवान राक्षस

 अधिकांश सम्पन्न हुआ अब, नियम पूरा होने आया
मारीच, सुबाहु नाम हैं जिनके, दो राक्षसों ने धमकाया

रक्त-मांस की वर्षा कर दी, यज्ञ वेदिका पर दोनों ने
लगभग पूरा होने को था, विघ्न हुआ तब इस कार्य में

यहाँ चला आया मैं व्याकुल, व्यर्थ परिश्रम हुआ जान के
क्रोध करूं उन पर, दूँ शाप, सोच नहीं पाता मैं मन में

शाप नहीं दे सकता कोई, ऐसा ही नियम है जिसमें
सत्य पराक्रमी, शूरवीर जो, आप राम को मुझे सौंप दें