Friday, November 4, 2016

सीताजी की गंगाजी से प्रार्थना, नाव से उतरकर श्रीराम आदि का वत्सदेशमें पहुंचना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

द्विपंचाश: सर्ग:

श्रीराम की आज्ञा से गुह का नाव मंगाना, श्रीराम का सुमन्त्र को समझा-बुझाकर अयोध्यापुरी लौट जाने के लिये आज्ञा देना और माता-पिता के लिए संदेश सुनाना, सुमन्त्र के वन में ही चलने के लिए आग्रह करने पर श्रीराम का उन्हें युक्तिपूर्वक समझाकर लौटने के लिए विवश करना, फिर तीनों का नाव पर बैठना, सीताजी की गंगाजी से प्रार्थना, नाव से उतरकर श्रीराम आदि का वत्सदेशमें पहुंचना और सांयकाल में एक वृक्ष के नीचे रहने के लिए जाना 

दीन वचन जब सुने राम ने, श्रीराम बोले सुमन्त्र से
स्नेह आपका मुझे ज्ञात है, किन्तु भेजता प्रयोजन से

नगर लौट के जब जायेंगे, कैकेयी तब ही मानेगी
चले गये वन राम जान यह, संतोष मन में धारेगी

यदि नहीं गये आप अयोध्या, उसे भरोसा कैसे होगा
राजा के प्रति हो संदेह, मैं ऐसा हरगिज नहीं चाहता

यही मुख्य उद्देश्य है मेरा, कैकेयी राज्य को पा ले
मेरे व राजा के प्रिय हित, जाकर यह संदेश उन्हें दें  

बार-बार तब दी सांत्वना, युक्ति युक्त यह बात कही
निर्जन वन में जाना होगा, जटा भी धारण करनी होगी

कहे वचन निषादराज से, बड़ का दूध इसी हित लाओ
लक्ष्मण व राम दोनों तब, ऋषि सम हुए जटाधारी हो

वानप्रस्थ का व्रत लिया तब, वल्कल भी धारे निज तन पर
तत्पश्चात गुह से बोले वे, तुम सावधान हो रहना तत्पर

दी आज्ञा विदा ली उससे, सीता, लक्ष्मण सहित वे चले  
गंगा के तट पर जा पहुंचे, तनिक व्यग्रता नहीं थी मन में

नाव सामने खड़ी हुई थी, सीता को बैठाया पहले
लक्ष्मण जब आसीन हो गये, अंत में राम आरूढ़ हुए

वैदिक मन्त्र का जाप किया तब, शास्त्र विधि से कर आचमन
सीता सहित प्रसन्न चित्त से, गंगा माँ को किया नत वन्दन

मल्लाहों ने नाव चलायी, तेजी से जल पर बढ़ती थी
बीच धार में जब पहुँची तब, सीता ने प्रार्थना की थी

 मेधावी दशरथ पुत्र यह, पिता की आज्ञा से वन जाते
करें वचन का पालन दृढ़ हो, रक्षित होकर रहें आपसे

मेरे व भाई संग लौटें, चौदह वर्ष बिता कर वन में
पूजा करूँगी मैं आपकी, सकुशल जब वापस आयेंगे

स्वर्ग, धरा, पाताल में बहती, ब्रह्मलोक तक फैली हो
सागर की पत्नी के रूप में, यहाँ दिखाई तुम देती हो

ब्राह्मणों को दान दूंगी मैं, वस्त्र अन्न से करूँगी पूजा
हों प्रसन्न आप हम सब पर, गंगा जी से की प्रार्थना

दक्षिण तट पर जा पहुंचे तब, नाव त्याग प्रस्थान किया
कहा लक्ष्मण से राम ने, अति सावधान अब रहना होगा

आगे-आगे तुम चलना, मध्य में सीता को रखना
सबसे पीछे चलूँगा मैं, एक-दूसरे की कर रक्षा

अब से ही होगी कठिनाई, निर्जन वन में अब जाते हैं
नहीं खेत हैं, नहीं बगीचे, ऊंचे-नीचे बस खड्ड हैं

 गंगा के जब पार पहुँच गये, रहे देखते उन्हें सुमन्त्र
दृष्टि से जब हो गये ओझल, अश्रु बहाते उनके नेत्र

वत्सदेश में जा पहुंचे तब, धन-धान्य से सम्पन्न जो था
मृगया-विनोद हित किया प्रहार, खा कंदमूल विश्राम किया

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में बावनवाँ सर्ग पूरा हुआ.