Tuesday, February 1, 2011

बने तेरा मधुबन, ओ कान्हा ! हमारा मन



बने तेरा मधुबन, ओ कान्हा ! हमारा मन

सद्भावों की लताओं पर उगें शांति पुष्प
 झर सम सहज अश्रु हों तुझी को अर्पण !

प्रेम जलधार बहे उड़े उमंग की फुहार
स्नेह सुवास भरे चले शीतल बयार !

अंतर की पुलक शुभ्र माल बन सजे
श्रद्धा, ज्ञान, निष्ठा के दीप जल उठें

दोष कंटक बीन सुख शिला पर हो अर्चन
शुभ संकल्पों से आरती श्वासों से वन्दन

बने तेरा मधुबन, ओ कान्हा ! हमारा मन

अनिता निहालानी
२ फरवरी २०११


1 comment:

  1. बहुत सुंदर अनुनय -
    शांति पुष्प पुलकित हुए -
    श्रध्दा दीप जल उठे -
    गोपिमय ,राधामय,मीरामय हो गया मन -

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