Thursday, February 24, 2011

अपेक्षाएँ

अपेक्षाएँ

टूटती हैं अपेक्षाएँ
क्योंकि टूटना ही उनकी नियति है
टूटकर बिखर नहीं जाते क्या बूढ़े सितारे
टूटते हैं महल, टूटते हैं दिल !

पर कौन है ?
जो टूटते हुए देखता है सबकुछ
स्वयं अटूट बन,
रह निरपेक्ष !

घटना घटती है
पर उसका कुछ नहीं घटता
रत्ती भर भी नहीं
घटे भी किससे
और बढ़े भी किसमें ?

जब वही वह व्याप्त है
वहाँ कौन करेगा अपेक्षा
किससे करेगा ?
वहाँ जो है, वैसा ही प्रिय है
तो टूटती रहें अपेक्षाएँ !

अनिता निहालानी
२४ फरवरी २०११

6 comments:

  1. sundar rachnaa anita ji.. badhai ... kal aapki yah post charchamanch par rakhungi... aap kal vaha aayen..

    ReplyDelete
  2. टूटती हैं अपेक्षाएँ
    क्योंकि टूटना ही उनकी नियति है
    टूटकर बिखर नहीं जाते क्या बूढ़े सितारे
    टूटते हैं महल, टूटते हैं दिल

    बहुत गहन चिंतन से परिपूर्ण प्रस्तुति..वास्तव में अपेक्षाएं ही दुखों का कारण हैं..बहुत सुन्दर. आभार

    ReplyDelete
  3. अपेक्षा तभी टूटती है जब मैं ही मैं हो , जहाँ तू ही तू है , सब तू ही है ...
    कौन किस्से रूठे , कौन किसको मनाये ...
    बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
  4. किसी से कुछ अपेक्षा न की जाये फिर जिससे जो भी हासिल होता है उसका मज़ा देखिये.

    ReplyDelete
  5. घटना घटती है
    पर उसका कुछ नहीं घटता
    रत्ती भर भी नहीं
    घटे भी किससे
    और बढ़े भी किसमें ?

    गहन चिंतन

    ReplyDelete
  6. ये तो अध्यात्मिक चिंतन से परिपूर्ण रचना है……………सरल शब्दो मे बेहद गहन बात कह दी है और यही शाश्वत सत्य है ……………एक वो ही तो है जो अखण्ड है, नित्य है , शाश्वत है।

    ReplyDelete