शांति सुमन
लाखों हृदयों में बोये क्रिया बीज
बिखेरी ज्ञान की खाद,
अमिय सम सत्संग के जल से
किया सिंचन, हे सदगुरु
.....और फिर फूटे अंकुर
पनपने लगे प्रेम वृक्ष
अखिल विश्व में महकते
शांति सुमन !
शांति जो अपरिहार्य है
सुख हेतु, विकास हेतु
शांति में ही होता
सम्यक सृजन !
आज समवेत स्वरों में
गुंजित हैं शांति गान
सिखाते धर्म का मर्म
बन प्रेम किरण, हे सदगुरु !
अनिता निहालानी
१ फरवरी २०११
खुबसुरत भावाभिव्यक्ति........
ReplyDeleteसमर्पण भाव
ReplyDeleteभक्ति भाव
और
श्रद्धा भाव ....
एक एक लफ्ज़ में बस ऐसी ही अनुभूति रही .