Wednesday, March 20, 2013

राजाके दरबार में विश्वामित्र का आगमन और उनका सत्कार


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 



अष्टादशः सर्गः
राजाओं तथा ऋष्यश्रंग को विदा करके राजा दशरथ का रानियों सहित पुरी में आगमन, श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म संस्कार, शील-स्वभाव एवं सद्गुण, राजाके दरबार में विश्वामित्र का आगमन और उनका सत्कार 


पुरोहित व बांधवों के साथ, राजा एक दिन बैठे थे
पुत्रों के विवाह विषय में, मंत्रियों से चर्चा करते थे

तभी पधारे विश्वामित्र, महामुनि, जो तेजस्वी थे
दिया संदेश द्वारपालों से, राजा से मिलना चाहते थे

कुशिक वंशी गाधिपुत्र को, देख द्वारपाल भी घबराए
तत्क्षण दौड़े वे दरबार, राजा को बताने आए

साथ पुरोहित को लेकर, सावधान हुए तब राजा
बड़े हर्ष से की अगवानी, जैसे इंद्र करें ब्रह्मा का

विश्वामित्र थे बड़े तपस्वी, प्रज्वलित हुए तेज से अपने
अर्ध्य निवेदन उन्हें किया, दर्शन से राजा हर्षित थे

किया महर्षि ने स्वीकार, शास्त्रीय विधि से अर्ध्य
नगर, खजाने, बन्धु, मित्रों का, कुशल पूछ किया धन्य

शत्रु नतमस्तक तो हैं न  ?, निकट राज्य की जो सीमा के
सम्पन्न होते हैं कर्म सभी ?, यज्ञ, पूजा, अतिथि सेवा के

पूछा कुशल अन्य ऋषियों का, इसके बाद मिले वशिष्ठ से
प्रसन्नचित हो बैठे आसन पर, पूजित होकर तब राजा से

मरणधर्मा को मिले ज्यों अमृत, निर्जल स्थान में जल बरसे
पुत्र मिले सन्तान हीन को, हर्ष उदय हो ज्यों उत्सव से

खोयी हुई निधि मिल जाये, है ऐसा ही आगमन आपका
ऐसा मेरा मत है मुनिवर, अहो भाग्य ! है कैसा मेरा

परम उदार पुलकित राजा ने, महामुनि की कही प्रशंसा
महामुने ! स्वागत है आपका, कहें आप अब निज कामना

उत्तम पात्र आप हैं मुनिवर, हर सेवा मुझसे लेने के
जन्म सफल हुआ है मेरा, जीवन भी हुआ है धन्य

लायी है सुंदर प्रभात, मेरी बीती हुई रात यह
दर्शन मिले आपके मुझको, अद्भुत और पवित्र है यह

तप कर हुए ब्रह्मर्षि, राजर्षि थे पूर्वकाल में
पूजनीय हैं मुनिवर आप, दोनों ही रूपों में    

तीर्थ हुआ है घर मेरा, पुण्य क्षेत्रों से हैं आए
क्या उद्देश्य है शुभागमन का, कहें आप क्या चाहते

उत्तम व्रत का पालन करते, कृपा करके आप कहें
कार्य के पूरा होने में, संशय को न मन में रखें

जो भी आज्ञा देंगे आप, पालन करूँगा मैं उसका
अतिथि देव समान हैं आप, अभ्युदय ही होगा मेरा

विनययुक्त वचन सुनकर ये, थे सुखदायी उर, कानों को
हर्षित हुए महर्षि सुनकर, थे यशस्वी, गुणी अति जो


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में अठाहरवाँ सर्ग पूरा हुआ.

Friday, March 15, 2013

श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म संस्कार, शील-स्वभाव एवं सद्गुण,


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


अष्टादशः सर्गः
राजाओं तथा ऋष्यश्रंग को विदा करके राजा दशरथ का रानियों सहित पुरी में आगमन, श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म संस्कार, शील-स्वभाव एवं सद्गुण, राजाके दरबार में विश्वामित्र का आगमन और उनका सत्कार 


बीत गए जब दिन ग्यारह, शिशुओं का किया नामकरण
नाम रखे गुरु वशिष्ठ ने, राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न

राजा ने भोजन करवाया, जनपद व पुरवासियों को
बहुत से उज्ज्वल रत्न दिए, दान में कई ब्राह्मणों को

जातकर्म संस्कार करवाए, समय-समय पर मुनि वशिष्ठ ने
कीर्ति ध्वजा कुल की फहराते, श्रीराम थे ज्येष्ठ सभी में

ब्रह्मा सम वे सर्वप्रिय थे, पिता का हर्ष बढ़ाने वाले
वेदों के विद्वान, थे सभी, लोक हित के कर्मों वाले

ज्ञानवान, सद्गुण सम्पन्न सब, राम सभी में तेजस्वी
निष्कलंक चन्द्रमा के सम, सेवा करते थे पिता की

गज स्कंध पर, अश्व पीठ पर, थे अति कुशल बैठने में
धनुर्वेद के अभ्यासी थे, सम्मानित भी रथ चालन में

लक्ष्मी की वृद्धि जो करते, लक्ष्मण, थे राम अनुरागी
सदा राम प्रिय ही करते, बचपन से, तन से सेवा भी

शोभा सम्पन्न थे लक्ष्मण, हों जैसे राम के प्राण दूसरे
राम को नींद न आती उन बिन, बिन उनके भोजन न खाते

राम सवार हुए अश्व पर, जब शिकार को वन जाते
धनुष लिए लक्ष्मण उनकी, रक्षा हित पीछे जाते

इसी तरह शत्रुघ्न भी, लक्ष्मण के जो छोटे भाई
प्राणों से भी प्रिय भरत के, भरत को प्रिय मानते भी

चार भाग्यशाली पुत्रों से, राजा दशरथ अति प्रसन्न थे
वैसे ही जैसे ब्रह्मा जी, हर्षित चार दिक्पालों से 

समझदार हुए जब बालक, सर्वगुणों से हुए थे अज्ञ
लज्जाशील, यशस्वी, थे वे, दूरदर्शी भी, व सर्वज्ञ

पुरुष सिंह वे राजकुमार, स्वाध्याय वेदों का करते
धनुर्वेद का अभ्यास भी, पिता की सेवा में रत रहते





Tuesday, March 12, 2013

श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म संस्कार


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 



अष्टादशः सर्गः
राजाओं तथा ऋष्यश्रंग को विदा करके राजा दशरथ का रानियों सहित पुरी में आगमन, श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म संस्कार, शील-स्वभाव एवं सद्गुण, राजाके दरबार में विश्वामित्र का आगमन और उनका सत्कार


दो पुत्रों को जन्म दिया था, इसके बाद सुमित्रा माँ ने
लक्ष्मण, शत्रुघ्न कहलाये, युक्त विष्णु के अर्ध भाग से

भरत सदा आनन्दित रहते, जन्मे थे वे मीन लग्न में
 नक्षत्र था पुष्य पुनीत, था सूर्य भी उच्च स्थान में

कर्क लग्न में सुमित्रानन्दन, आश्लेषा नक्षत्र था अनुपम
चारों पुत्र थे महामनस्वी, पृथक-पृथक गुणों से सम्पन्न

भाद्रपदा नामक तारों से, कान्तिमान थे चारों पुत्र
गन्धर्वों के गीत, बजी दुंदुभी, देवों ने बरसाए पुष्प

उत्सव हुआ अयोध्या में तब, गलियाँ, सडकें भरीं खचाखच
अपने करतब दिखा रहे थे, जहां अनेकों नट और नर्तक

गूंज रहे थे शब्द वहाँ पर, गाने और बजाने के भी
बिखरे हुए थे रत्न अनेकों, ले जाएँ जो दीन-दुखी

राजा ने दिए उपहार, मागध, सूत, बंदीजनों को
गोधन व सहस्त्रों धन भी, बांटा था ब्राह्मणों को

नामकरण किया शिशुओं का, ग्यारह दिन बीतने पर
गुरु वशिष्ठ ने नाम रखे थे, राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न
  





Tuesday, March 5, 2013

अष्टादशः सर्गः श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म संस्कार,


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


अष्टादशः सर्गः
राजाओं तथा ऋष्यश्रंग को विदा करके राजा दशरथ का रानियों सहित पुरी में आगमन, श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म संस्कार, शील-स्वभाव एवं सद्गुण, राजाके दरबार में विश्वामित्र का आगमन और उनका सत्कार

यज्ञ समाप्त हुआ दशरथ का, निज भाग ले, देव लौट गए
पूर्ण हुआ दीक्षा का नियम, राजा पुरी में प्रविष्ट हुए

हो सम्मानित चले गए, राजा भिन्न-भिन्न देशों के
ऋषियों को प्रणाम कर रहे, हर्षमय थे सैनिक उनके

श्रेष्ठ ब्राह्मणों को आगे कर, परिजन संग आए राजा
लौट गए निज स्थान को, ऋष्यश्रंग भी संग शांता

छह ऋतुएं जब बीत गयीं, यज्ञ हुआ था सम्पन्न जबसे
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की, तिथि नवमी, कर्क लग्न में

पुनर्वसु नक्षत्र था जब, पांचों ग्रह थे उच्च स्थान में
संग चन्द्रमा के बृहस्पति, लग्न में विराजमान थे

विष्णुरूप हविष्य से उत्पन्न, खीर के अर्ध भाग से उपजे
कौशल्या के पुत्र राम, इक्ष्वाकु कुल का आनंद थे

नेत्रों में लालिमा कुछ-कुछ, रक्तिम ओष्ठ, विशाल भुजाएं
स्वर दुन्दुभि के सम गम्भीर, दिव्य लक्षणों से भाएँ

कौशल्या की हुई शोभा, उस अमित तेजस्वी पुत्र से
जैसे देवमाता अदिति, शोभित हुईं थीं वज्रपाणि से

उसके बाद भरत जन्मे थे, चतुर्थांश से न्यून भाग से
सत्य पराक्रमी, कैकेयी पुत्र, सदगुणों से सम्पन्न थे