Wednesday, February 28, 2024

श्रीराम आदि का अत्रिमुनि के आश्रम पर जाकर उनके द्वारा सत्कृत होना


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्


सप्तदशाधिकशततम: सर्ग:


श्रीराम आदि का अत्रिमुनि के आश्रम पर जाकर उनके द्वारा सत्कृत होना तथा अनसूया द्वारा सीता का सत्कार 


ऋषियों ने प्रस्थान किया जब, किया राम ने गहरा चिंतन  

उचित नहीं उनका यहाँ रहना, सम्मुख आये कई कारण

 

मन ही मन विचार किया यह, यहीं मिला था भाई भरत से 

स्मृति सभी की नित्य निरन्तर, व्यथित किया करती है शोक से   


इसी आश्रम की धरित्री पर, सेना का पड़ाव होने से  

 अपवित्र हो गई है भूमि यह, हाथी-घोड़ों की लीद से 


हम भी कहीं और ही जायें, निकल पड़े वे यह निर्णय ले

 सीता और लक्ष्मण को ले, अत्रिमुनि के आश्रम पहुँचे थे   


पुत्र की भाँति स्नेह दिखाया, सीता का भी सत्कार किया  

अत्रि मुनि ने आगे बढ़कर, लक्ष्मण को स्वयं संतुष्ट किया 


सबके हित में लगे हुए जो, धर्मज्ञ मुनिश्रेष्ठ अत्रि ने 

धर्म परायणा तापसी पत्नी, अनसूया से शब्द कहे 


दे दुलार कंठ लगाओ, विदेह राज नंदिनी सीता को

  परिचय देते हुए कहा तब, अनसूया का रामचंद्र को


एक समय था दस वर्षों तक, वृष्टि नहीं हुई, जग तपा  था

उग्र तपस्या के प्रभाव से,  उत्पन्न किया फल-मूल यहाँ 


मंदाकिनी की धारा लायीं, दस हज़ार वर्ष तप करके 

वही अनसूया देवी हैं, विघ्न हरे थे सभी ऋषियों के 


देवों के कार्य हेतु इन्होंने, दस रात्रि सम एक रात्रि की 

माता की भाँति पूज्या हैं, राम ! तुम्हारे लिए यह देवी 


वंदनीया तपस्विनी हैं यह, सब प्राणियों हेतु जगत के

विदेहनंदिनी देवी सीता, जाकर उनके आशीष लें 


‘अच्छा’ कहकर सीता से तब, श्रीराम ने वचन कहे तभी 

 प्रयास करो निज कल्याण का, तुमने मुनि की बात है सुनी

 

अपने सत्कर्मों के बल पर, अनसूया जो कहलाती हैं 

शीघ्र निकट उनके जाओ, आश्रय लो तुम इस योग्य हैं