Thursday, May 31, 2012

वाल्मीकि मुनि द्वारा रामायण काव्य में निबद्ध विषयों का संक्षेप से उल्लेख


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


तृतीयः सर्गः
वाल्मीकि मुनि द्वारा रामायण काव्य में निबद्ध विषयों का संक्षेप से उल्लेख 


गंगा पार भरद्वाज दर्शन, चित्रकूट का छवि अवलोकन
भरत मिलाप वहीं कुटिया में, वापस उन्हें भेज प्रसन्न

जलांजलि पिता को देना, अवध में पादुकाओं का स्थापन
नंदीग्राम में भरत निवास, श्रीराम का अरण्य को गमन

वध विराध का, सुतीक्ष्ण मुनि, शरभंग से मिलन
अनुसूया से भेंट सीता की, उनको अंगराग समर्पण

दर्शन अगस्त्य मुनि का, उनके दिए धनुष का ग्रहण
शूर्पनखा संवाद राम से, लक्ष्मण द्वारा उसका विरूपण

खर दूषण, त्रिशिरा का वध, शूर्पनखा, रावण का कथन
प्रतिशोध रावण का लेना, वध मारीच का, सीता हरण

सीता हेतु विलाप राम का, गृधराज जटायु का वध
कबंध से भेंट राम की, पम्पासर का अवलोकन

हनुमान से भेंट राम की, ऋष्यमूक पर्वत पर जाना
सुग्रीव से भेंट राम की, मित्रता स्थापित करना

बाली और सुग्रीव का युद्ध, साथ ही विनाश बाली का
सुग्रीव को राज्य समर्पण, घोर विलाप तारा का

सुग्रीव का शरत काल में, आश्वासन सीता खोज का
माल्यवान पर्वत शिखर पर, वर्षाऋतु में निवास राम का  

  

Tuesday, May 29, 2012

बालकाण्डम् तृतीयः सर्गः


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


तृतीयः सर्गः
वाल्मीकि मुनि द्वारा रामायण काव्य में निबद्ध विषयों का संक्षेप से उल्लेख

नारद जी से सुनी रामायण, धर्म, अर्थ, मुक्ति प्रदायिनी
पुनः हृदय में चिंतन करते, मुनि राम की कथा सुहावनी

कुश के आसन पर विराजे, हुए समाधि में निमग्न
रामचरित्र का चिंतन करते, साथ हृदय में अनुसंधान

राजा-रानी, राम-सीता की, कितनी बातें प्रकट हुईं
हँसना, बोलना, चलना आदि,  देखे साक्षात सभी

वन की सारी लीलाएं भी, सब उनकी दृष्टि में आयीं
योग आश्रय से मुनिवर ने, हर घटना प्रत्यक्ष पायी

सबके प्रिय राम का जीवन, योग समाधि में देखा
महाकाव्य रचने हेतु तब, वाल्मीकि ने की चेष्टा

नारद जी ने कहा था जैसे, बैठे लिखने क्रम में उसी
सागर रत्नों की खानि ज्यों, महाकाव्य गुण, अलंकार, की

सब श्रुतियों का सारभूत यह, हर चित्त को हरने वाला
चारों पुरुषार्थ का दाता, कर्णों को प्रिय लगने वाला

जन्म राम का, पराक्रम भी, क्षमा, सत्य व सौम्य भाव
वर्णन किया कवि ने इसका, लोकप्रियता व सर्व प्रिय भाव

विश्वामित्र के साथ घटीं थीं, जो अद्भुत घटनायें उस वन
धनुषभंग, ब्याह सीता सँग, उर्मिला का भी किया चित्रण

राम-परशुराम संवाद, गुण उनके, अभिषेक की सारी बातें
केकैयी की दुष्टता, शोक दशरथ का, विघ्न राज्यभिषेक में




Saturday, May 26, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् द्वितीय सर्ग


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्

द्वितीय सर्ग
रामायण काव्य का उपक्रम- तमसा के तट पर क्रौंचवध से संतप्त हुए महर्षि वाल्मीकि के शोक का श्लोक रूप में प्रकट होना तथा ब्रह्माजी का उन्हें रामचरित्रमय काव्य के निर्माण का आदेश देना 


यही सोचते हुए मुनि ने, ब्रह्मा जी को श्लोक सुनाया
शायद उचित नहीं था शाप, शोक से उनका मन घबराया

ब्रह्मा हँसे समझ कर पीड़ा, श्लोक ही है यह वाक्य छन्दबद्ध
नहीं करो अन्यथा विचार तुम, मुझसे ही प्रेरित यह शब्द

वर्णन करो राम चरित्र का, धर्मात्मा व वीर पुरुष जो
नारद जी से जो भी सुना है, श्लोक बद्ध वह कथा कहो

गुप्त या प्रकट वृतांत जो, राम, लक्ष्मण, व सीता के
सहज ज्ञात होंगे वे तुमको, कुछ भी मिथ्या नहीं लिखोगे

जब तक इस पावन धरती पर, सत्ता है नदियों, पर्वत की
तब तक रामायण भी रहेगी, तब तक महिमा है उसकी भी

जब तक प्रचलित राम कथा, तब तक तुम भी हो सृष्टि में
ऊपर, नीचे, ब्रह्म लोक में, जहाँ तुम्हारी आये मन में

जब अंतर्धान हुए ब्रह्मा जी, शिष्यों सहित मुनि थे विस्मित
बार-बार गाते थे श्लोक वे, शिष्य हुए बड़े प्रसन्न चित्

कहने लगे शिष्य उनके तब, गुरुदेव ने दुःख प्रकटा था
शोक बना वह श्लोक रूप, चार चरण से युक्त वाक्य था 

Monday, May 21, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


द्वितीय सर्ग
रामायण काव्य का उपक्रम- तमसा के तट पर क्रौंचवध से संतप्त हुए महर्षि वाल्मीकि के शोक का श्लोक रूप में प्रकट होना तथा ब्रह्माजी का उन्हें रामचरित्रमय काव्य के निर्माण का आदेश देना 


हे निषाद ! तू रहे अशांत, नित्य-निरंतर ही पीड़ित हो
बिना किसी अपराध के मारा, क्रौंच युग्म से इक पक्षी को

ऐसा कह विचार किया जब, तब मन में चिंता उठ आयी
खग के शोक से पीड़ित मुझमें, यह कैसी वृत्ति छायी

परम ज्ञानी व बुद्धिमान थे, मुनि एक निश्चय पर पहुँचे
निकट गए अपने शिष्य के, उससे वचन यही बोले

शोक से पीड़ित मुख से निकला, चार चरण में बद्ध वाक्य है
सम अक्षर प्रत्येक चरण में, वीणा पर यह गेय भी है

श्लोक रूप होगा वचन यह, पूछा ऋषि ने भरद्वाज से
मुनिवर तब संतुष्ट हुए, हंसकर किया समर्थन उसने

विधिपूर्वक किया स्नान तब, लौटे निज आश्रम की ओर
पीछे आया शिष्य भी उनका, जल से भरा कलश लेकर

लौट आश्रम बातें करते, विविध विषय पर तब मुनिवर
किन्तु लगा था ध्यान सदा, उसी श्लोक की भाषा पर

तभी पधारे ब्रह्मा जी भी, सृष्टिकर्ता अखिल विश्व के
देख उन्हें स्वागत करने को, वाल्मीकि तब खड़े हो गए

पाध्य, अर्ध्य, आसन, स्तुति से, पूजन किया ब्रह्माजी का
पूछा कुशल समाचार भी, नत चरणों में प्रणाम किया

आसन पर विराजे ब्रह्मा, उन्हें भी सादर वहीं बिठाया
तब भी वाल्मीकि के मन में, वही श्लोक रहा छाया

बैर भाव में जिसकी बुद्धि, सोचा उस निषाद के बारे
मनहर कलरव करता था जो, प्राण हर लिये उस पक्षी के  

Thursday, May 17, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् द्वितीय सर्ग


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

द्वितीय सर्ग
रामायण काव्य का उपक्रम- तमसा के तट पर क्रौंचवध से संतप्त हुए महर्षि वाल्मीकि के शोक का श्लोक रूप में प्रकट होना तथा ब्रह्माजी का उन्हें रामचरित्रमय काव्य के निर्माण का आदेश देना



क्रौंच पक्षियों का इक जोड़ा, निकट विचरता था उनके
मधुर स्वरों में कलरव करता, सँग सदा जो एक-दूजे के

वाल्मीकि भगवान ने देखा, क्रौंच पक्षियों के जोड़े को
इक निषाद ने उस जोड़े से, हत कर डाला नर पक्षी को

पापपूर्ण विचार थे जिसके, जन्तुओं का अकारण वैरी था
मुनि देखते थे हतप्रभ हो, बाण लगा जब उस निषाद का

खून से लथपथ गिरा धरा पर, तड़पा पंख फड़फड़ा कर
देख पति को घायल, रोयी, क्रौंची करुण चीत्कार स्वर

उत्तम पंखों वाला खग वह, सदा विचरता था उसके सँग
प्रेम से मतवाला था पक्षी, मस्तक का था ताम्र वर्ण

दुःख से पीड़ित हुई रो रही, ऐसे पति से वियुक्त हुई
देख दुर्दशा उर भर आया, दयालु थे धर्मात्मा ऋषि

करुणामय स्वभाव था जिनका, है अधर्म निश्चय हुआ जब
रोती हुई क्रौंची को लख कर, कहे निषाद से ये शब्द तब



Tuesday, May 15, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम द्वितीय सर्ग


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

द्वितीय सर्ग
रामायण काव्य का उपक्रम- तमसा के तट पर क्रौंचवध से संतप्त हुए महर्षि वाल्मीकि के शोक का श्लोक रूप में प्रकट होना तथा ब्रह्माजी का उन्हें रामचरित्रमय काव्य के निर्माण का आदेश देना

नारद मुनि के वचन सुने जब, आदर सहित सँग शिष्यों के
महामुनि का किया था पूजन, वाणी विशारद वाल्मीकि ने

हो सम्मानित नारद ने तब, प्रस्थान की आज्ञा माँगी
गगन मार्ग से चले गए वे, अनुमति जब जाने की पायी

तमसा तट गए वाल्मीकि, गंगा से जो दूर नहीं था
देवलोक गए नारद को, दो घड़ी ही समय हुआ था

तमसा तट कीचड़ रहित था, मुनि बोले अपने शिष्य से
भरद्वाज, यह तट सुंदर है, स्वच्छ यहाँ जल सु-मन के जैसे

कलश यहीं रख दो, हे तात, वल्कल मुझे सौंप दो मेरा
यहीं होगा स्नान आज अब, उत्तम तीर्थ है यह तमसा का

सुन शिष्य ने आज्ञा मानी, दिए वस्त्र वल्कल गुरुवर को
लिये वस्त्र विचरण करते थे, देख-देख उस सुंदर वन को  








Thursday, May 10, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
नारद जी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना 


भरद्वाज मुनि के आश्रम, पराक्रमी राम जब पहुँचे
हनुमान को भेजा मिलने, अवध पुरी में वीर भरत से

बातें करते सुग्रीव से, जा पहुँचे वे नंदीग्राम तब
कटा जटाएं सँग भाई के, राजसिहांसन प्राप्त किया अब

राम राज्य में लोग सुखी व, संतुष्ट व पुष्ट रहेंगे
दुर्भिक्ष का भय न होगा, रोग-व्याधि से मुक्त रहेंगे

पुत्र की मृत्यु नहीं देखेंगे, विधवा नहीं होंगी महिलाएं
पतिव्रता होंगी नारियां, धर्म वृत्ति को सब पनपायें

अग्नि से भी भय न होगा, जल में डूब न कोई मरेगा
वात से पीड़ित न होंगे नर, ज्वर का भी न भय होगा

क्षुधा नहीं सताएगी तब, चोरी का भी भय न होगा
नगर-राष्ट्र होंगे सम्पन्न, सतयुग सा ही आलम होगा

महायशस्वी राम करेंगे, अश्वमेध यज्ञ सौ गिनकर
विधि पूर्वक दान करेंगे, सुवर्णों की दक्षिणा देकर

ग्यारह हजार वर्ष चलेगा, राम राज्य सुंदर धरती पर
 वर्ण सभी निज धर्म में स्थित, राम पधारें परमधाम तब

पाप का नाशक व पुण्य मय, वेदों सा पावन है ज्ञान यह
रामचरित को जो भी पढेगा, सब पापों से मुक्त हुआ वह

आयु बढ़ाने वाला है यह, मृत्यु बाद भी स्वर्ग मिलेगा
पुत्र, पौत्र अन्य परिजन सँग, उच्च लोक को प्राप्त करेगा

ब्राह्मण पढ़े, बने विद्वान, पढ़े क्षत्रिय तो राज्य मिलेगा
वैश्य लाभ व्यापार में पाए, शुद्र को भी सम्मान मिलेगा

इस प्रकार श्री बाल्मीकि निर्मित आदि रामायण आदि काव्य के बालकाण्ड का पहला सर्ग पूरा हुआ.




Wednesday, May 2, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
नारद जी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना 


अपरिमित बुद्धि के स्वामी, कपि ने की प्रदक्षिणा राम की
सत्य निवेदन किया तब उनसे, छवि देखी है सीता जी की

इसके बाद सुग्रीव के सँग, राम गये थे सागर तट को  
सूर्य समान तेज बाणों से, क्षुब्ध किया महासागर को

प्रकट किया सागर ने स्वयं को, पुल निर्माण किया राम ने
उस पुल से जा पहुँचे लंका, नाश किया रावण का उनने

मिलन हुआ सीता से उनका, लज्जित हुए राम मिल उन्हें
 प्रवेश किया अग्नि में सुन के, मर्म भेदी थे वचन राम के

अग्नि के कहने पर सीता को, माना राम ने निष्कलंक
महान कर्म से इस राम के, देव, ऋषि सब हुए संतुष्ट

राम हुए पूजित देवों से, भरा पुलक से अंतर को
हो कृतार्थ अभिषिक्त किया, लंक राज्य पर विभीषण को

 दिया वानरों को पुनः जीवन, देवों से पा वर राम ने
सभी साथियों सँग चले, प्रस्थान किया पुष्पकविमान से