कोटि नमन निज सु-मन, सुमति को
नमन धरा को और गगन को
नमन नीर को और पवन को,
नमन सर्वदा पूत अगन को
कोटि नमन निज सुमन, सुमति को !
शत-शत नमन संत जनों को
ऋषियों, मुनियों की वाणी को,
नमन अनंत तुम्हें हो सदगुरु
जिसने नमन सिखाया हमको !
जिन पितरों के हुए वंशधर
उनको शत-शत बार नमन,
मातृदेव भव, पितृदेव भव
उनसे ही पाया है जीवन !
नमन सूर्य को नमन धरा को
हो नमन सभी दिक्पालों को,
साक्षी हों सम्पूर्ण दिशाएं
सादर नमन परम ब्रह्म को !
अनिता निहालानी
९ फरवरी २०११
भक्तिमय सुन्दर रचना, आभार.
ReplyDeletebahut sundar kaveeeta.
ReplyDeleteजंगल राज ---ब्यंग.
आद.अनीता जी,
ReplyDeleteआपकी कविता के भाव बहुत सुन्दर लगे !
यही नमन ही तो है जिसे आज हम भुला बैठे हैं !