पावन गोपियों के प्रेम सम
मन खाली है
क्या बोले !
मन खाली है
क्यों बोले !
हम जो न माटी थे न आकाश
उलझे रहे पंचभूतों के जाल में
शिकार हुए द्वन्द्वों के,
औरों को किया !
हम जो हैं शुद्ध, बुद्ध, निर्मल
सुखातीत, दुखातीत
धवल हिम शखिर से अमल
पावन गोपियों के प्रेम सम !
अनिता निहलानी
५ फरवरी २०११
दिल तो बच्चा है न ,उसे मिटटी के खिलौने ही भाते हैं,भले ही क्षण में टूट जाता है और फिर रोता है उसके लिये.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteअब सभी ब्लागों का लेखा जोखा BLOG WORLD.COM पर आरम्भ हो
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