Saturday, February 5, 2011

पावन गोपियों के प्रेम सम


पावन गोपियों के प्रेम सम

मन खाली है
क्या बोले !
मन खाली है
क्यों बोले !

हम जो न माटी थे न आकाश
उलझे रहे पंचभूतों के जाल में
शिकार हुए द्वन्द्वों के,
औरों को किया !

हम जो हैं शुद्ध, बुद्ध, निर्मल
सुखातीत, दुखातीत
धवल हिम शखिर से अमल
पावन गोपियों के प्रेम सम !

अनिता निहलानी
५ फरवरी २०११

3 comments:

  1. दिल तो बच्चा है न ,उसे मिटटी के खिलौने ही भाते हैं,भले ही क्षण में टूट जाता है और फिर रोता है उसके लिये.

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  2. बहुत सुन्दर रचना !

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