Thursday, February 17, 2011

ऐसी हो अपनी पूजा

ऐसी हो अपनी पूजा


लक्ष्य परम, हो मन समर्पित
 हृदयासन पर वही प्रतिष्ठित !

शांतिवेदी, ज्ञानाग्नि ज्वलित
भावना लौ, प्रेम पुष्प अर्पित !

पुलक जगे अंतर, उर प्रकम्पित
सहज समाधि अश्रुधार अंकित !

छंटें कुहासे, करें ज्योति अर्जित
आनंद प्रसाद पा बीज स्फुटित !

मिले समाधान, लालसा खंडित
सुन-सुन धुन मन प्राण विस्मित !

अव्यक्त व्यक्त कर, अंतर हर्षित
दृष्टा को दृश्य बना आत्मा शोभित !

अनिता निहालानी
१७ फरवरी २०११  


8 comments:

  1. आद. अनिता जी,
    सचमुच पूजा के भाव ऐसे ही होने चाहिए !
    सुन्दर रचना !

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  2. बहुत अच्छी लगी रचना.

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  3. बहुत सुंदर सार्थक....पावन भाव

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  4. bahut sundar bhavpoorn kavita.aanand aa gaya.

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  5. अच्‍छे भाव। अच्‍छी रचना।

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  6. वास्तव में मन भक्तिभाव से विगलित हो गया ! सुन्दर रचना !

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  7. सुन्दर सी रचना ....अच्छी लगी.
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