ऐसी हो अपनी पूजा
लक्ष्य परम, हो मन समर्पित
हृदयासन पर वही प्रतिष्ठित !
शांतिवेदी, ज्ञानाग्नि ज्वलित
भावना लौ, प्रेम पुष्प अर्पित !
पुलक जगे अंतर, उर प्रकम्पित
सहज समाधि अश्रुधार अंकित !
छंटें कुहासे, करें ज्योति अर्जित
आनंद प्रसाद पा बीज स्फुटित !
मिले समाधान, लालसा खंडित
सुन-सुन धुन मन प्राण विस्मित !
अव्यक्त व्यक्त कर, अंतर हर्षित
दृष्टा को दृश्य बना आत्मा शोभित !
अनिता निहालानी
१७ फरवरी २०११
आद. अनिता जी,
ReplyDeleteसचमुच पूजा के भाव ऐसे ही होने चाहिए !
सुन्दर रचना !
बहुत अच्छी लगी रचना.
ReplyDeleteबहुत सुंदर सार्थक....पावन भाव
ReplyDeletebahut sundar bhavpoorn kavita.aanand aa gaya.
ReplyDeleteअच्छे भाव। अच्छी रचना।
ReplyDeleteवास्तव में मन भक्तिभाव से विगलित हो गया ! सुन्दर रचना !
ReplyDeleteसुन्दर सी रचना ....अच्छी लगी.
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sundar rachna!
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