Tuesday, February 22, 2011

अबदल

अबदल

अंतर अकुलाता नहीं अब
गीत उगाता नहीं
तकता है निर्निमेष
पल पल बदलते परिवेश को
भर उठता है कृतज्ञता से
कि वह है अबदल
ध्रुव तारे की तरह अटल !

अनिता निहालानी
२२ फरवरी २०११

5 comments:

  1. खुबसूरत भावों को दर्शाती रचना |
    बढ़ी दोस्त |

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  2. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

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  3. gaagar me saagar........badhiya kavita

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  4. वाकई अबदल ही तो है सारी बदलाहट के पीछे,जिसने उस खोज लिया उसके लिये तो संसार ही बदल जाता है.

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