Wednesday, August 13, 2014

महर्षि वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र का सत्कार और कामधेनु को अभीष्ट वस्तुओं की सृष्टि करने का आदेश

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

द्विपंचाशः सर्गः

महर्षि वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र का सत्कार और कामधेनु को अभीष्ट वस्तुओं की सृष्टि करने का आदेश

जपवान वसिष्ठ मुनि का, विश्वामित्र ने पाया दर्शन
विनयपूर्वक झुके चरण में, कर प्रणाम हुए प्रसन्न

स्वागत कर दिया एक आसन, फल-फूल का भी उपहार
विधिपूर्वक अतिथि राजा का, किया मुनि ने आदर सत्कार

विश्वामित्र ने उनके तप का, अग्निहोत्र व शिष्य वर्ग का
लता-वृक्ष आदि का उनसे, पूछा समाचार सबका

महातपस्वी वसिष्ठ मुनि ने, राजा की कुशलता पूछी
क्या प्रसन्न रहती है प्रजा, अपनाते राजोचित नीति ?

भृत्यों का पोषण करते हो, क्या मानते हैं वे आज्ञा ?
विजय पा चुके शत्रु पर भी, सेना, कोष, परिवार है कैसा

‘सभी कुशल है’ कहा नरेश ने, दोनों का चला संवाद
प्रेम हुआ दोनों में मिलकर, बढ़ता रहा वार्तालाप

महाबली नृप ! कहा मुनि ने, है असीम प्रभाव तुम्हारा
सेना सहित तुम स्वीकारो, यथायोग्य सत्कार हमारा

अतिथियों में तुम श्रेष्ठ हो, कर्त्तव्य यही है मेरा
ग्रहण करो इस आदर को, विनीत अनुरोध है मेरा

विश्वामित्र ने कहा मुनि से, वचनों से सत्कार हो गया
दर्शन मिला आपका मुझको, आदर फल-फूल से हुआ

आप पूजनीय हैं मेरे पर, भलीभांति की आपने पूजा
मैत्रीपूर्ण दृष्टि से देखें, नमस्कार कर अब हूँ जाता

आग्रह बार-बार किया जब, कहा मुनि को तब राजा ने
है स्वीकार अनुरोध आपका, मुनिवर ! आप पूज्य मेरे

प्रसन्न हुए मुनि अति तब, चितकबरी धेनु को बुलाया
धुल गये थे कल्मष जिसके, कामधेनु थी वह गैया

उसे बुलाकर कहा मुनि ने, शबले ! मेरी बात सुनो
सेना सहित इन राजर्षि का, सत्कार शीघ्र यथोचित हो

जो-जो भी जिसको भाता हो, षडरस भोजन प्रस्तुत कर दो
कामधेनु मेरे कहने से, द्रव्यों की वर्षा कर दो

सरस पदार्थ, अन्न, पान भी, लेह्य, चोष्य, भांति भांति के
ढेर लगा दो सब चीजों के, हो न विलम्ब, शीघ्रता हो


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में बावनवाँ सर्ग पूरा हुआ.






Monday, August 11, 2014

शतानंद द्वारा श्रीराम का अभिनन्दन करते हुए विश्वमित्र के पूर्व चरित्र का वर्णन

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

एकपञ्चाशः सर्गः

शतानंद के पूछने पर विश्वामित्र का उन्हें श्रीराम के द्वारा अहल्या के उद्धार का समाचार बताना तथा शतानंद द्वारा श्रीराम का अभिनन्दन करते हुए विश्वमित्र के पूर्व चरित्र का वर्णन

विश्वामित्र की बात सुनी जब, हुए रोमांचित शतानंद थे
विस्मित हुए राम दर्शन से, वे गौतम के ज्येष्ठ पुत्र थे

मुनि से पुनः ये प्रश्न कहे तब, मेरी माता थीं तप लीन
पूजन किया राम का माँ ने ?, कहा आपने वृतांत प्राचीन  ?

मुक्त हुईं माता शाप से, मिलीं पिता से होकर हर्षित ?
आए राम यहाँ क्या सुख से, पूज्य पिता से होकर पूजित

शतानंद का प्रश्न सुना जब, वाकपटु मुनि तब बोले
पूरा किया कर्तव्य मेरा, नहीं उठा रखा कुछ मैंने

मिलीं अहल्या मुनि गौतम से, जैसे रेणुका जमदग्नि से
महा तेजस्वी शतानंद ने, सुनकर बात कही ये राम से

स्वागत है आपका नर श्रेष्ठ, अहोभाग्य जो आप पधारे
विश्वामित्र के कर्म अचिन्त्य, परम आश्रय हैं जगत के

तप से ब्रह्मर्षि पद पाया, कांति असीम अद्भुत चरित्र
धन्य अति हैं आप धरा पर, रक्षक हैं मुनि विश्वामित्र

पहले थे राजा ये धार्मिक, धर्मज्ञ व अति विद्वान्
प्रजाहित में तत्पर रहते, दीर्घकाल किया था शासन

प्रजापति के पुत्र हुए कुश, कुश के थे कुशनाभ पुत्र
कुशनाभ के गाधि नामके, गाधि पुत्र हैं विश्वामित्र

महातेजस्वी विश्वामित्र ने, वर्ष हजारों किया था शासन
एक समय लेकर सेना ये, पृथ्वी पर करते थे विचरण

नगरों, राष्ट्रों, नदियों तथा, आश्रमों में विचरण करते
आ पहुंचे सुखमय स्थान पर, आश्रम पर मुनि वशिष्ठ के

फूलों, वृक्षों से था शोभित, नाना पशु विचरण करते थे
देव, गन्धर्व, किन्नर चारण थे, सिद्ध वहाँ निवास करते थे  

ब्राह्मण, देवर्षि, ब्रह्मर्षि, तप से सिद्द हुए महात्मा
ब्रह्मलोक से उस आश्रम में, थे बालखिल्य, वैखानस महात्मा

कोई जल पीकर रहते थे, कोई हवा का सेवन करते
सूखे पत्ते, फल-मूल खा, जप-होम में वे रत रहते 


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में इक्यानवाँ सर्ग पूरा हुआ.



  




Monday, August 4, 2014

श्रीराम आदि का मिथिला-गमन

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

पञ्चाशः सर्गः

श्रीराम आदि का मिथिला-गमन, राजा जनक द्वारा विश्वामित्र का सत्कार तथा उनका श्रीराम और लक्ष्मण के विषय में जिज्ञासा करना एवं परिचय पाना

 विश्वामित्र को आगे करके, राम, लक्ष्मण को लेकर
चले आश्रम से गौतम के, तब ईशान कोण की ओर

मिथिला के यज्ञ मंडप में, विशवामित्र से कहा राम ने
अति सुंदर है यज्ञ समारोह, ब्राह्मण हैं नाना देशों के

बाड़े भरे सैकड़ों छकड़ों से, वेदों का स्वाध्याय हो रहा
निशिचत करें स्थान कोई अब, ठहरें हम सब भी जहाँ

एकांत में डेरा डाला,  जहाँ जल था अति सुलभ
राजा जनक भी सुनकर आये, शतानंद को लेकर संग

अर्ध्य लिए विनीत भाव से, अगवानी की महामुनि की
मुनि ने पूजा ग्रहण की तब, यज्ञ विषय में जिज्ञासा की

राजा के संग जो आये थे, मुनि, पुरोहित उपाध्याय सब
यथायोग्य मिले उन सबसे, नृप जनक ने कहा वचन तब

आसन पर हों विराजमान अब, सफल हुआ है यह आयोजन
चरण आपके यहाँ पड़े हैं, किया आपने यहाँ पदार्पण

बारह दिन ही शेष रहे हैं, अब मेरी यज्ञ दीक्षा के
दर्शन करें आप देवों का, भाग ग्रहण करने जो आयें  

महामुनि मैं धन्य हुआ हूँ, सदा कल्याण आपका हो
देवों सम जो पराक्रमी हैं, वीर कुमार कौन हैं दोनों

सुंदर आयुध धारण करते, मन्दगति से जो चलते हैं
कमलदल से शोभित होते, ये दोनों पुत्र किसके हैं

चन्द्र और सूर्य सम जो, इस देश को शोभित करते  
परिचय दें आप इनका जो, लगते हैं मिलते जुलते

राजा जनक का प्रश्न सुना जब, मुनि ने सारी बात सुनाई
 दशरथ के ये पुत्र हैं दोनों, घटना हर तब कह बताई

गौतम मुनि से भेंट हुई है, किया अहल्या का उद्धार
धनुष यज्ञ के विषय में सुनकर, आए यहाँ हैं मेरे साथ


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में पचासवाँ सर्ग पूरा हुआ.