श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
श्रीराम के सद्गुणों का वर्णन, राजा दशरथ का श्रीराम को युवराज बनाने का विचार
तथा विभिन्न नरेशों और नगर एवं जनपद के लोगों को मन्त्रणा के लिए अपने दरबार में
बुलाना
मामा के घर गये भरत जब,
शत्रुघ्न को साथ ले गये
भाई सहित हुआ था स्वागत,
सुखपूर्वक लगे थे रहने
अश्वयूथ के अधिपति भी थे,
मामा युधाजित भरत के
उन्हें पुत्रों से बढ़कर
मानते, लाड़-प्यार लुटाया करते
सब इच्छाएं पूरी होतीं,
किन्तु पिता का स्मरण बना था
महेंद्र, वरुण समान सुतों
को, याद किया करते थे राजा
निज देह से प्रकट हुई हों,
चार भुजाओं सम थे चारों
पुरुष शिरोमणि पुत्र सभी
वे, अति प्रिय थे महाराज को
पर उनमें भी महातेजस्वी,
श्रीराम थे अधिक गुणी
जैसे ब्रह्माजी हैं जग में,
वृद्धि करते पिता की प्रीति
एक अन्य कारण भी इसका, थे
वह साक्षात् ही विष्णु
देवों हित अवतीर्ण हुए थे,
परम प्रचंड रावण वध हेतु
अति तेजस्वी उन पुत्र से,
शोभित होती थीं महारानी
वज्रधारी इंद्र से जैसे,
शोभित होतीं माता अदिति
रूपवान व बड़े वीर थे, दोष नहीं किसी का देखते
पिता समान गुणों में बढ़के, नहीं
दूसरा उन सम भू में
वाणी मधुर शांत चित्त था,
सुन कठोर वचन चुप रहते
उपकार को रखते याद, अपराधों
को भुला ही देते
अस्त्र-शस्त्र के अभ्यास से,
समय निकाल सद्चर्चा करते
ज्ञानवान, वृद्ध जनों से,
बातचीत कर शिक्षा लेते
आगत संग वार्ता करते, प्रथम
वचन वही बोलते
बल का गर्व नहीं था मन में,
प्रिय वचन ही सदा बोलते
झूठ कभी न मुख से निकले,
प्रजा के प्रेमी प्रिय भी उसके
दयावान थे, परम पवित्र, थे क्षत्रिय
भी वे सच्चे
कभी निषिद्ध कर्म न करते,
शास्त्र विरुद्ध बात न सुनते
न्याययुक्त पक्ष के हित,
बृहस्पति सम युक्तियाँ देते
देह निरोग अवस्था तरुण थी,
देशकाल के ज्ञाता भी थे
अच्छे वक्ता, साधू पुरुष भी, श्रेष्ठ गुणों से
युक्त थे वे
उन्हें देख ऐसा लगता था,
सार तत्व हों ज्यों पुरुषों का
धर्म और अर्थ के ज्ञाता, जिसे विधाता ने प्रकटाया
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, पतन का कारण - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
Deleteसुंदर प्रस्तुति। आभार।
ReplyDelete............
लज़ीज़ खाना: जी ललचाए, रहा न जाए!!
बहुत सुंदर वर्णन, आभार!
ReplyDeleteअर्शिया जी व अनुराग जी, स्वागत व आभार !
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