Monday, January 31, 2011

सखा सारे जग के

सखा सारे जग के

तुम अर्जुन के सखा थे
द्रौपदी के भी
सुदामा के बालसखा
ग्वाल-ग्वालिनों के भी,
साख्यभाव तुम्हीं से उपजा है
जैसे प्रेम, आनंद और ज्ञान !

उपवन में शीतल पवन की  छुवन सा
पथराई धरा पर जल की फुहार सा,
चन्दन का लेप ज्यों तप्त तन पर
अमराई की छांह अलसाते मन पर,

साख्यभाव जो आश्वस्त करता है
जोड़ता है हृदयों को
तुमने सिखाई जग को
सखा बनने की रीति,
दुःख-सुख में सँग रह
साथ निभाने की नीति,
मिलजुल कर हँसने-रोने
गाने-झूमने की प्रीति,

इस तरह कि तुम सखा के पर्याय बन गए हो
सखा सारे जग के, आत्मीय तुम हो कान्हा !

अनिता निहलानी
३१ जनवरी २०११

3 comments:

  1. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति....

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  2. कृषण गाथा से सराबोर कविता अच्छी लगी धन्यवाद|

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  3. सुंदर प्रस्तुति

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