सखा सारे जग के
तुम अर्जुन के सखा थे
द्रौपदी के भी
सुदामा के बालसखा
ग्वाल-ग्वालिनों के भी,
साख्यभाव तुम्हीं से उपजा है
जैसे प्रेम, आनंद और ज्ञान !
उपवन में शीतल पवन की छुवन सा
पथराई धरा पर जल की फुहार सा,
चन्दन का लेप ज्यों तप्त तन पर
अमराई की छांह अलसाते मन पर,
साख्यभाव जो आश्वस्त करता है
जोड़ता है हृदयों को
तुमने सिखाई जग को
सखा बनने की रीति,
दुःख-सुख में सँग रह
साथ निभाने की नीति,
मिलजुल कर हँसने-रोने
गाने-झूमने की प्रीति,
इस तरह कि तुम सखा के पर्याय बन गए हो
सखा सारे जग के, आत्मीय तुम हो कान्हा !
अनिता निहलानी
३१ जनवरी २०११
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeleteकृषण गाथा से सराबोर कविता अच्छी लगी धन्यवाद|
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
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