श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
एकोननवतितम: सर्ग:
भरत का सेनासहित गंगा पार करके भरद्वाज के आश्रम पर जाना
श्रृंगवेरपुर में गंगा तट पर, रात्रि बिताकर भरत जगे
गुह को शीघ्र बुलाकर लाओ, शत्रुघ्न को उठाकर बोले
श्रीराम का चिंतन करता था, सोया नहीं आपकी भांति
कह रहे थे शत्रुघ्न भरत से, आ पहुँचा था तब गुह वहीं
हाथ जोड़कर उनसे बोले, सुख से बीती आपकी रात ?
सेना सहित रहे बिना कष्ट के,बन्धु सहित स्वस्थ हैं आप
गुह के स्नेहिल वचन सुने जब, कहा भरत ने तब यह उससे
सुख से बीती रात हमारी, बड़ा सत्कार किया आपने
अब व्यवस्था करें कुछ ऐसी, मिलकर ये मल्लाह तुम्हारे
बहुत सी नौकाएं लाकर, गंगा से हमको पार उतारें
भरत का यह आदेश सुना तो, जाकर बोला गुह नगर में
नौकाओं को घाट पर लाओ, सेना को हम पर उतारें
राजा की आज्ञा मानकर, मल्लाह सभी उठ खड़े हुए
पांच सौ नौकाएं ले आये, कर एकत्र चारों ओर से
स्वस्तिक के चिन्हों से अलंकृत, अति मजबूत नौकाएं भी थीं
बड़ी-बड़ी घण्टियाँ लटकीं थी, पताकाएं फहराती थीं
कल्याणमयी नाव गुह लाया, जिसमें बिछे श्वेत कालीन
मांगलिक शब्द भी होता था, स्वस्तिक नाम वाली नाव पर
पहले पुरोहित व गुरु बैठे, तत्पश्चात भरत व शत्रुघ्न
कौसल्या, सुमित्रा, कैकेयी, अन्य रानियां हुईं आसीन
गाड़ियाँ व अन्य सामग्री, लादी गयीं अन्य नावों पर
सैनिक निज सामान उठाते, करने लगे महान रौरव
पताकाएं फहराती थीं, सब पर कुशल मल्लाह बैठे
तीव्र गति से वे उन सबको, उस पार लेकर जा रहे थे
कुछ पर केवल स्त्रियां ही थीं, कुछ नौकाओं पर अश्व सवार
कुछ पर खच्चर, बैल लदे थे, कुछ रत्नों को ले जातीं पार
दूसरे तट पर पहुँचाकर, जब वे नावें लौट रही थीं
प्रदर्शन करते थे गतियां, मल्लाह बंधु जल में उनकी
वैजयंती पताकाओं से सजे, हाथी नदी पर करते थे
पँखधारी पर्वतों के समान, उस समय वे प्रतीत होते थे
कितने ही जन नावों पर थे, कितने बांस के बेड़ों पर थे
कुछ कलशों या घड़ों के द्वारा, कुछ तैर कर पार जाते थे
इस प्रकार वह पावन सेना, गंगा के उस पार उतर गयी
मैत्र नामक मुहूर्त में स्वयं, प्रयागवन की ओर बढ़ गयी
वहाँ पहुँच कुमार भरत, विश्राम की आज्ञा सेना को दे
ऋत्विज व राजसदस्यों संग, भरद्वाज के दर्शन हित गए
देवपुरोहित भारद्वाज के, आश्रम पर भरत जी पहुँचे
दर्शन किये पर्णशाला सहित, रमणीय व विशाल वन के
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में नवासीवाँ सर्ग पूरा हुआ.
बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteपढ़े--लौट रहे हैं अपने गांव