Monday, December 20, 2010

भावांजलि

तुमसे यदि मेरा सुख, हे प्रभु !
तुम भी तो मुझसे हर्षाते,
होता न यदि अपना कोई
बोलो किस पर तुम प्रेम लुटाते ?
तुम जो क्रीडा रचा रहे हो
मैं भी तो हूँ साक्षी उसका !
बन प्रकाश दिल में आ जाते
नित बनता मैं भागी जिसका,
सृष्टि का यह अद्भुत मेला
तुमने मेरे लिये रचा है,
ओ राजाओं के राजा ! यह
प्रेम तुम्हारा मुझमें बसा है.

तुम बन कर ज्योति आये हो
भीतर – बाहर तुम छाए हो,
नृत्य कर रही अनुपम दृष्टि
हुई मुदित है सारी सृष्टि,
डूब गया है कण-कण जिसमें
ज्योति नदी झर-झर धारा में !

4 comments:

  1. सुन्दर रचना......

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  2. उसकी सर्वव्यापकता और महिमा का सुन्दर गान!

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  3. behad hi sundar...prabhu se bhakt ka rishta pragadh hai..

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  4. तुमसे यदि मेरा सुख, हे प्रभु !
    तुम भी तो मुझसे हर्षाते,
    होता न यदि अपना कोई
    बोलो किस पर तुम प्रेम लुटाते ?---भोतिक जगत के लिये भी तो कितना सत्य है यह.पर आज व्यक्ति आत्मकेंद्रित होता जा रहा है,इसीलिये तनावग्रस्त भी रहता है.

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