Thursday, December 9, 2010

भावांजलि

बीती रात्रि प्रतीक्षा में
तुम कहाँ रहे प्रियतम मेरे
है सुंदर प्रभात का उत्सव
उनींदे नयन हैं मेरे !

टूटे मेरी नींद युगों की
मेरी पलकें तभी खुलें,
सम्मुख हो मुखड़ा उसका
उस ज्योति से चैतन्य मिले !

हम चला करें अपनी धुन में
खोये रहते निज उलझन में
होता प्रभात, पंछी गाते !
नदिया बहती, जंगल हँसते
उड़ते बादल, उपवन खिलते !
पर हम न जाने किस दुःख को
भर उर में गीत नहीं गाते,
न मुस्काते !
वह हमें बुलाता है हर पल,
उसकी पुकार भी पत्थर दिल
हम, सुनी अनसुनी कर जाते!

2 comments:

  1. नदिया बहती, जंगल हँसते
    उड़ते बादल, उपवन खिलते !

    अत्यंत सुन्दर वर्णन किया है, प्रकृति का....

    सुन्दर रचना के लिए आत्मीय साधुवाद स्वीकार करें.

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