Wednesday, December 1, 2010

bhavanjali

जो होना था हो चुका यहाँ,
पाना था जो, पाया हमने !
थमे कदम, पा मंजिल का भ्रम
चुक गयी शक्ति, ढहा सब श्रम !
किन्तु, आज यह भान हुआ है
है अंतहीन क्रम जीवन का,
नित नयी सुबह, हर रात नयी
नहीं अंत कहीं इस पथ का !

तुम एक सत्य जीवन धन हो
जग में हर ओर छलावा है,
चुपचाप प्रेम किये जाऊं
जीना तो एक भुलावा है !
प्रीत की डोर बंधी तुमसे
जीवन का यही सम्बल है
दिल में दीप प्रेम का जलता
वही पथिक का पाथेय जल है !

3 comments:

  1. वही पथिक का पाथेय जल है !
    वाह!!!

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  2. अनुपमा जी , आभार एवं अभिनन्दन, गीतांजलि है ही एक अनमोल विरासत !

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  3. आज यह भान हुआ है
    है अंतहीन क्रम जीवन का,
    और यह क्रम अनवरत जारी रहता है ...शुक्रिया

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