आयी दोपहरिया, तप्त धरा
चढ़ आया सूरज मध्य गगन,
चरवाहे भी थक कर सोये
वटवृक्ष छांह सहलाये पवन !
उसके आने की हुई आहट,
मैंने भी सुनी वंशी की धुन !
धरती का कोमलतम स्पर्श
है माँ की गोद सा प्रिय मुझे !
वृक्षों की छाया का कौतुक,
मदमस्त, सुगन्धित आम्रबौर
भौरों की गुंजन मन भायी
प्रकृति के रूप सभी सुखकर !
प्रकृति का सुन्दर चित्रण, "प्रकृति के रूप सभी सुखकर". यदि हम प्रकृति का सुख समझ ले तो अन्य सुखों कि कामना से विमुक्त हो जाते हैं.
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए आपका आभार.
बेहद मनमोहक काव्य रचना......ह्रदय को स्पर्श करती बहुत कोमल....आप मेरा मार्गदर्शन यूँ ही करती रहे...धन्यवाद..
ReplyDeletesundar varnan!
ReplyDeleteबेहद मनमोहक काव्य रचना|धन्यवाद\
ReplyDeleteआप सभी का आभार एवं धन्यवाद !
ReplyDeleteभावानुवाद अच्छा लगा।
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