Tuesday, December 21, 2010

भावांजलि

गीतों के शब्दों में घुलमिल
सुख की धार पिघल जाये,
धरती हँसती, हँसता अम्बर
स्वर भीतर के हँस बह जाएँ !
गरजें बादल तो लगे हँसे
विद्युत भी चमके मुस्काए,
आनंद भरे कण - कण में अब
पीड़ा में भी हम हरषाएं !
जीवन तो सुख का स्रोत बने
मृत्यु भी हमें हँसा जाये !

ओ चितचोर ! प्रभु मेरे
डोल रही है गूंज प्रेम की
छन पत्तों से आये उजाला ,
 मेघ उड़ें नभ में अलसाये
बहता समीर तन सहलाए,
दे रहे गवाही मिल ये सब
ओ चितचोर ! मुझे बतलायें
तुम मुझसे मिलने नित आते
मन मेरा लख झुक झुक जाये !

2 comments:

  1. प्रभु का सान्निध्य... ही सबकुछ है!
    सुन्दर!

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  2. धरती हँसती, हँसता अम्बर
    स्वर भीतर के हँस बह जाएँ !
    गरजें बादल तो लगे हँसे
    विद्युत भी चमके मुस्काए,---
    हे प्रभु,हमे भी ऐसी आखें दे दो.

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