तुमसे यदि मेरा सुख, हे प्रभु !
तुम भी तो मुझसे हर्षाते,
होता न यदि अपना कोई
बोलो किस पर तुम प्रेम लुटाते ?
तुम जो क्रीडा रचा रहे हो
मैं भी तो हूँ साक्षी उसका !
बन प्रकाश दिल में आ जाते
नित बनता मैं भागी जिसका,
सृष्टि का यह अद्भुत मेला
तुमने मेरे लिये रचा है,
ओ राजाओं के राजा ! यह
प्रेम तुम्हारा मुझमें बसा है.
तुम बन कर ज्योति आये हो
भीतर – बाहर तुम छाए हो,
नृत्य कर रही अनुपम दृष्टि
हुई मुदित है सारी सृष्टि,
डूब गया है कण-कण जिसमें
ज्योति नदी झर-झर धारा में !
सुन्दर रचना......
ReplyDeleteउसकी सर्वव्यापकता और महिमा का सुन्दर गान!
ReplyDeletebehad hi sundar...prabhu se bhakt ka rishta pragadh hai..
ReplyDeleteतुमसे यदि मेरा सुख, हे प्रभु !
ReplyDeleteतुम भी तो मुझसे हर्षाते,
होता न यदि अपना कोई
बोलो किस पर तुम प्रेम लुटाते ?---भोतिक जगत के लिये भी तो कितना सत्य है यह.पर आज व्यक्ति आत्मकेंद्रित होता जा रहा है,इसीलिये तनावग्रस्त भी रहता है.