Thursday, December 16, 2010

भावांजलि

आहट जब कदमों की आयी,
झोंका पवन का होगा, माना
तुमने जब पुकार लगाई,
हुआ नींद में भ्रम था जाना !
हे प्रभु ! लौट गए जब तुम
पड़ा था कितना पछताना,
चौंक गयी मैं, पुनः आये तुम
स्वागत का न किया ठिकाना,
फटेहाल, सूने आंगन में
तुम्हें पड़ा था बैठाना !



प्रेम राह में मिटना होगा
फूलों की यह डगर नहीं है
तलवारों पर चलना होगा
बस मधुमय यह सफर नहीं है !

3 comments:

  1. अत्यंत ही सुन्दर भाव, प्रेम ही राहे मिटने के लिए ही बनीं होती हैं....

    सुन्दर रचना के लिए आपका साधुवाद.

    "गांधी जी बाहर निकल आये" पर आपकी अमूल्य टिपण्णी देखकर प्रशन्नता होगी...

    साधुवाद.

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  2. prem bhakti ki dagar ki sundar vivechna!

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