आहट जब कदमों की आयी,
झोंका पवन का होगा, माना
तुमने जब पुकार लगाई,
हुआ नींद में भ्रम था जाना !
हे प्रभु ! लौट गए जब तुम
पड़ा था कितना पछताना,
चौंक गयी मैं, पुनः आये तुम
स्वागत का न किया ठिकाना,
फटेहाल, सूने आंगन में
तुम्हें पड़ा था बैठाना !
प्रेम राह में मिटना होगा
फूलों की यह डगर नहीं है
तलवारों पर चलना होगा
बस मधुमय यह सफर नहीं है !
very nice.............
ReplyDeleteअत्यंत ही सुन्दर भाव, प्रेम ही राहे मिटने के लिए ही बनीं होती हैं....
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए आपका साधुवाद.
"गांधी जी बाहर निकल आये" पर आपकी अमूल्य टिपण्णी देखकर प्रशन्नता होगी...
साधुवाद.
prem bhakti ki dagar ki sundar vivechna!
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