तुमने जो प्रेम सुधा सौंपी
रच बस गयी मेरे कण-कण में,
उस प्रीत माधुरी को पीने
तुम आये हो मेरे मन में !
अंतर्मन में है गूंज रहा
एक राग मधुर बन कर गुंजन,
उस स्वरलहरी को सुनने ही
आये हो तुम बनकर धड़कन !
नयनों में छवि इस सृष्टि की
जो प्रेम तत्व से रची गयी
उस दृश्य अनोखे को लखने
तुम आये हो मेरे उर में !
जो छिपा रहा जग आँखों से
जो व्यक्त कभी न हो पाया,
वह गीत मधुर, रसमय तुमको
अर्पित है आज, प्रभु मेरे !
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteभावपूर्ण मधुर मधुर
ReplyDeleteआभार
अनुपमा जी व राकेश जी, स्वागत व आभार !
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