श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
एकोनविंशः सर्गः
विश्वामित्र के मुख से श्री राम को साथ ले जाने की बात सुनकर राजा दशरथ का
दुखित एवं मूर्छित होना
नृपश्रेष्ठ राजा दशरथ का, अद्भुत, विस्तृत वचन सुना जब
हैं आपके योग्य वचन ये, पुलकित हुए मुनि बोले तब
कौन यहाँ उदार है इतना, आप महाकुल में जन्में हैं
गुरु आपके हैं वसिष्ठ जी, जो स्वयं ही ब्रह्मर्षि हैं
मेरे उर की बात सुनें अब, सुनकर उसको पूर्ण करें
जो प्रतिज्ञा की है आपने, सत्य उसे कर के दिखलायें
सिद्धि हेतु अनुष्ठान कर रहा, उसमें बाधा बनें राक्षस
इच्छा से रूप धर लेते, शक्ति वान, बलवान राक्षस
अधिकांश सम्पन्न हुआ अब, नियम पूरा
होने आया
मारीच, सुबाहु नाम हैं जिनके, दो राक्षसों ने धमकाया
रक्त-मांस की वर्षा कर दी, यज्ञ वेदिका पर दोनों ने
लगभग पूरा होने को था, विघ्न हुआ तब इस कार्य में
यहाँ चला आया मैं व्याकुल, व्यर्थ परिश्रम हुआ जान के
क्रोध करूं उन पर, दूँ शाप, सोच नहीं पाता मैं मन में
शाप नहीं दे सकता कोई, ऐसा ही नियम है जिसमें
सत्य पराक्रमी, शूरवीर जो, आप राम को मुझे सौंप दें
राम कथा की अमृत धारा चलती रहे . आनंद आया
ReplyDeleteLATEST POSTसपना और तुम
बहुत भावपूर्ण।
ReplyDeleteअति सुंदर...
ReplyDeleteआध्यात्म की भावपूर्ण
ReplyDeleteसुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
शुभकामनायें
मेरे ब्लॉग में भी पधारें
Bhavapurn behatarin rachana
ReplyDeleteकालीपद जी, कविता जी, राजपूत जी, ज्योति जी, विक्रम जी, लोकेन्द्र जी आप सभी का स्वागत व आभार!
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