तुम हो ! तुम अपने हो प्रियतम
यह भान मुझे हर्षित करता,
दिन रात प्रेम की धार बहे
फिर भी न तृषित अंतर भरता !
ज्ञान मुक्त हो भयविहीन अंतर अपना
टुकड़ों में नहीं बंटा, हो साझा सपना
कर्मशील मानव हो, प्रभु ! और प्रेम का स्रोत
हो प्रकाशित बिखर जग में परम जीवन ज्योत !
सुख पाकर मैं न इतराऊँ
दुःख को दुःख न जानूँ,
दो इतनी समता, दृढ़ता तुम
कुछ भी क्षुद्र न मानूँ !
दो इतनी समता, दृढ़ता तुम
ReplyDeleteकुछ भी क्षुद्र न मानूँ !
सात्विक प्रार्थना!