Wednesday, March 15, 2023

श्रीराम का अपनी चरण पादुका देकर सबको विदा करना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्



द्वादशाधिकशततम: सर्ग:


ऋषियों का भरत को श्रीराम की आज्ञा के अनुसार लौट जाने की सलाह देना, भरत का पुनः श्रीराम के चरणों में गिरकर चलने की प्रार्थना करना, श्रीराम का उन्हें समझाकर अपनी चरण पादुका देकर उन सबको विदा करना 


मदमत्त हंस के समान तब, मधुर स्वरों में बात यह कही 
स्वाभाविक विनयी  प्रज्ञा  से, रक्षा कर सकते हो भू की 

अमात्यों, मंत्रियों, सुहृदों से, बुद्धिमानों से लो सलाह 
सहज सभी कर सकते हो, हो कार्य चाहे कितना भी बड़ा

चँद्रमा से विलग हो चाँदनी, सागर चाहे लाँघे सीमा
हिम का त्याग करे हिमालय, पिता का वचन न झूठा  होगा 

लोभ वश या कामना वश हो,  कर्म किया जो कैकेयी ने
उसके लिए दोष मत देकर,  देना माँ का सम्मान उन्हें 

द्वितीय के चंद्र सम सुंदर, जो सूर्य समान तेजस्वी हैं 
दर्शन से मिले  आह्लाद, उन श्री राम से कहा भरत ने

स्वर्णाभूषित दो पादुकाएँ, चरणों में आपके अर्पित 
योगक्षेम निर्वाह करेंगी, चरण रखें अपने इन पर

तब महातेजस्वी श्रीराम ने, पग रखकर फिर अलग किए  
सौंप दिया फिर उन्हें भरत को, करके प्रणाम भरत ने कहा 

धर जटा-चीर , फल-मूल खा, मैं भी चौदह वर्ष रहूँगा 
रहकर नगर से बाहर ही मैं, आपकी प्रतीक्षा करूँगा 

चौदह वर्ष पूर्ण होने पर, प्रथम दिन यदि आप न आए 
मैं कर जाऊँगा तब प्रवेश, प्रज्ज्वलित  होती ज्वाला में 

देकर स्वीकृति इस बात को, राम ने उनको गले लगाया 
शत्रुघ्न को भी लगा हृदय से, सुंदर वचन प्रेम से कहा 

अपनी व सीता की शपथ दे, तुमसे यह बात मैं कहता 
सदा कैकेयी की रक्षा करना, उनके प्रति क्रोध न करना 

इतना कहते-कहते उनकी, आँखों में आँसू भर आए 
व्यथित हृदय से भाइयों को तब, विदा किया था श्रीराम ने 

परम उज्ज्वल पादुकाओं को, लेकर फिर धर्मज्ञ भरत ने 
श्रीराम की की थी परिक्रमा, रखा मस्तक पर गजराज के 

धर्म में हिमालय की भाँति, स्थिर रहता था हृदय राम का  
जनसमुदाय, गुरु, मंत्री, प्रजा, माता व भाई को विदा किया 

कौसल्या आदि माताओं का, गला रुंध गया अश्रुओं से 
  कह न सकीं कुछ वे राम से, कर प्रणाम गये राम कुटी में

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में 
एक सौ बारहवाँ सर्ग पूरा हुआ.

2 comments:

  1. बहुत सुंदर अनीता जी,

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    1. स्वागत व आभार मधुलिका जी!

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