श्रीसीतारामचंद्राभ्यां
नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
द्विसप्ततितमः सर्गः
भरत का कैकेयी के भवन में जाकर उसे प्रणाम करना, उसके
द्वारा पिताके परलोकवास का समाचार पा दुखी हो विलाप करना तथा श्रीराम के विषय में
पूछने पर कैकेयी द्वारा उनका श्रीराम के वनगमन के वृत्तांत से अवगत होना
नहीं हरा है धन ब्राह्मण का, धनी या निर्धन नहीं मारा
परस्त्री पर नजर न डालें, कारण अन्य है वन जाने का
होने वाला राज्याभिषेक, श्रीराम का
सुना मैंने
उनके हित माँगा वनवास, ले लिया राज्य तुम्हारे हित में
सत्यप्रतिज्ञ स्वभाव के कारण, पूर्ण पिता ने की माँगें
लक्ष्मणऔर सीता के साथ, श्रीराम वन को भेजे गये
पुत्रशोक से पीड़ित होकर, महाराज ने त्यागे प्राण
सब कुछ किया तुम्हारे कारण, राजपद तुम करो स्वीकार
शोक और संताप त्याग कर, धैर्य धर्म का अब लो आश्रय
है तुम्हारे ही अधीन अब, नगर और यह
निष्कंटक राज्य
विधि-विधान के ज्ञाता हैं जो, वसिष्ठ और ब्राह्मण के संग
कर अंतिम संस्कार पिता का, राज्याभिषेक कराओ अब
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के
अयोध्याकाण्ड में बहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ.
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