Tuesday, December 14, 2010

भावांजलि

तुमने भर दी खाली झोली
कुछ भी न, मैंने तुम्हें दिया,
तुम दाता ! ऐसे हो औघड़
मैंने कुछ देकर बचा लिया,
क्यों न सब दे पायी मैं
जब आये तुम मेरे द्वारे,
तुमने प्रेम अपार बहाया
न देखा  कृपण हृदय को मेरे !

मैंने दिया निमंत्रण तुमको
मेरे हृदय सदन में आना,
पर तुम आये तब थी बेसुध
वह आना मैंने न जाना,
तुमने भेजे दूत, उन्हें भी
लौटा दिया नहीं पहचाना !

5 comments:

  1. हे प्रभु , तेरी माया अपरम्पार .

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  2. सही है हम उसकी माया से ही ठगे जाते हैं !

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  3. कई बार ठगा कर भी अच्छा लगता है, सुन्दर रचना ! साधुवाद स्वीकार करें.

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