Thursday, January 20, 2011

प्रेम की भाषा बोले कान्हा

प्रेम की भाषा बोले कान्हा

नन्द-यशोदा अपलक निरखें
नन्हें कान्हाजी का मुखड़ा,
धन्य हुई ब्रज की भूमि पा
नीलमणि सम चाँद का टुकड़ा !

मोर मुकुट पीतांबर धारे
घुंघराली लटें सुंदर अलकें,
ओज टपकता मुखमंडल से
नयनों से मधुघट छलकें !

नित ग्वालों सँग गोचारण
यमुनातट वंशीवट घूमें,
वंशी धुन सुन थिरकें ग्वाले
पशु, पक्षी, पादप झूमें !

कृष्ण, कन्हैया, माधव, केशव
मोहन, गिरधर, वनमाली,
अनगिन नाम अनेक लीलाएं
वृन्दावन में रच डालीं !

प्रेम की भाषा बोले कान्हा
प्रेम सुधा में भीगी राधा,
प्रेम का बंधन नेह का धागा
ब्रज के हर जन से बांधा !

अनिता निहालानी
२० जनवरी २०११   

5 comments:

  1. नन्द के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की !
    कान्हा जी की बहुत खुबसूरत शब्दों मै रची रचना !

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  2. बहुत सुन्दर भक्तिगीत ..आभार

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  3. धन्य हुई ब्रज की भूमि पा
    नीलमणि सम चाँद का टुकड़ा !----धन्य हुए हम सब पाठक भी इस मन मोहक भावन्जली को पढ़ कर .

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