Sunday, January 2, 2011

भावांजलि

टूटा दर्प, छूटा अभिमान
बारम्बार हुआ मन आहत,
विश्वास तुम्हारा है जबसे
बल अंतर का हुआ जागृत !

करते-करते कुछ न पाया
किया-धरा सब व्यर्थ गया,
अब कुछ करना न रहा शेष
उन चरणों से जब जुड़ा हिया !

भीतर की दुनिया अपनी है
है गीत जहाँ संगीत जहाँ,
परिवर्तन बाहर की भाषा
नित्य एक रस प्रीत वहाँ !

5 comments:

  1. गहन भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.

    अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
    तय हो सफ़र इस नए बरस का
    प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
    सुवासित हो हर पल जीवन का
    मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
    करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
    शांति उल्लास की
    आप पर और आपके प्रियजनो पर.

    आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.

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  2. अब कुछ करना न रहा शेष
    उन चरणों से जब जुड़ा हिया !


    बहुत सुंदर -
    बहुत अच्छा प्रयास है
    बधाई .

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  3. यदि व्यक्ति भीतर की और अग्रसर हो जाए इश्वर की सुंदरता को प्राप्त कर सकता है.

    सुन्दर रचना.

    आपका साधुवाद.

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  4. भीतर की दुनिया अपनी है
    है गीत जहाँ संगीत जहाँ,
    सुन्दर!

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  5. बहुत प्रभावपूर्ण कृति, सुन्दर अच्छी रचना
    नव वर्ष की ढेर सारी शुभ कामना

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