Friday, January 28, 2011

चैतन्य

चैतन्य

जैसे सागर
नन्हीं-नन्हीं बूंदों को समेटे है,
सूर्य अनगिन रश्मियों को समोए है,
पवन बेहिसाब गन्धों को लिये डोल रही है,
वैसे वह चैतन्य
हमें सहेजता है !

उसके सानिध्य में
हम कितने सुरक्षित हैं,
जैसे बूंद सागर में,
किरण सूरज में,
गंध पवन में !

अनिता निहालानी
२८ जनवरी २०११    

1 comment:

  1. वैसे वह चैतन्य
    हमें सहेजता है !--कितनी आसानी से सरल शब्दों में तुमने बता दिया कि हम क्या हैं.बहुत खूब .

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