सद्-गुरु
तुम ज्ञान के अथाह सागर हो,
और हम उसका एक मोती पाकर ही विमुग्ध हैं !
तुम प्रेम का बहता हुआ दरिया हो,
जिसका एक छींटा हमें भी भिगो गया है !
तुम आनंद के महा स्रोत हो,
और हम तुम्हारी आँखों की मस्ती में
डूबते-उतराते हैं !
अनिता निहालानी
२४ जनवरी २०११
सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..श्रद्धा से परिपूर्ण ..
ReplyDeleteसुमधुर भाव -
ReplyDeleteश्रद्धा से परिपूर्ण रचना -
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteअत्यंत ही सुन्दर रचना.....आभार
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