Monday, January 10, 2011

तुम

तुम

व्यथा धुला मन
शाश्वत मुख का दर्पण,
द्रवित हृदय में कम्पित सत्य,
हृदय गुफा में आनंद निर्झरों की गूंज,
यह सब तुमसे जुड़े रहने में है !

यह मधुमय क्षण
अमृत घूंट पिलाया तुमने,
अंतर नीड़ सजाया
दिया नूतन बोध,
भीतर पाया रस स्रोत
भेद आवरण देह, मन का
भासित हुए तुम !

अनिता निहालानी
१० जनवरी २०११

3 comments:

  1. जब ईश्वर से जुड़ाव हो जाए तो फिर संसार से अलगाव खलता नहीं......आभार
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    "तुमने मेरी पत्नी की बेइज्जती की थी" नयी पोस्ट पर आपकी टिपण्णी की प्रतीक्षा रहेगी. "arvindjangid.blogspot.com"
    ....................................

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  2. लघु कथा "तुमने मेरी पत्नी की बेइज्जती की थी" पर आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी.-अरविन्द

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  3. अरविन्दजी आपकी कहानी अच्छी लगी पर आपके ब्लॉग पर बहुत बार प्रयास करने पर भी टिप्पणी नहीं लिख पायी

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