ज्ञान का सूरज बने तुम !
निरंतर एक प्रवाह
प्रेमरस में सिक्त ज्योति
जो मिटा दे तम हृदयों से
ज्ञान का सूरज बने तुम !
अनवरत एक धारा
मधुरस में सिक्त वाणी
जो मिटा दे कलुष सारा
नेह के निर्झर बने तुम !
बोलता है मौन
है अमिय में सिक्त स्मित
जो मिटा दे दुःख मनों से
सुखों के सागर बने तुम !
अनिता निहालानी
२७ जनवरी २०११
"बोलता है मौन" अत्यंत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति....आभार.
ReplyDeleteप्रेरक और विचारोत्तेजक रचना।
ReplyDeleteबोलता है मौन
ReplyDeleteहै अमिय में सिक्त स्मित
जो मिटा दे दुःख मनों से सुखों के सागर बने तुम !
सुन्दर भावाभिव्यक्ति.....
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार 29.01.2011 को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteआपका नया चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteप्रवाहमयी सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
बहुत ही सुन्दर रचना...
अत्यंत भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति..बहुत प्रवाहमयी..आभार
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति....
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