Sunday, January 23, 2011

सद्-गुरु

सद्-गुरु


तुम ज्ञान के अथाह सागर हो,
और हम उसका एक मोती पाकर ही विमुग्ध हैं !

तुम प्रेम का बहता हुआ दरिया हो,
जिसका एक छींटा हमें भी भिगो गया है !

तुम आनंद के महा स्रोत हो,
और हम तुम्हारी आँखों की मस्ती में
डूबते-उतराते हैं !

अनिता निहालानी
२४ जनवरी २०११    

5 comments:

  1. सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  2. बहुत सुन्दर..श्रद्धा से परिपूर्ण ..

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  3. सुमधुर भाव -
    श्रद्धा से परिपूर्ण रचना -

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  4. बहुत सुन्‍दर.

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  5. अत्यंत ही सुन्दर रचना.....आभार

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