Thursday, June 13, 2024

अनसूया के पूछने पर सीता का उन्हें अपने स्वयंवर की कथा सुनाना

श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्


अष्टादशाधिकशततम: सर्ग: 


सीता अनसूया संवाद, अनसूया का सीता को प्रेमोपहार देना तथा अनसूया के पूछने पर सीता का उन्हें अपने स्वयंवर की कथा सुनाना 


सीता के ये वचन सुने जब, अनसूया को अति हर्ष हुआ 

बड़े स्नेह से सूंघ कर मस्तक, मिथलेशकुमारी से कहा 


उत्तम व्रत पालने वाली !, शक्ति मैंने तप से संचित की 

उस तपोबल का ले आश्रय, वर माँगने को तुमसे कहती 


 युक्ति-युक्त बात कही तुमने, सुनकर अति संतोष हुआ है

क्या प्रिय अब मैं करूँ तुम्हारा ?, तुमने उत्तम वचन कहा है 


सुन कर कथन यह अनसूया का, सीता को हुआ अति विस्मय 

मंद स्मित लाकर अधरों पर, कहा, नहीं !  मुझे कुछ न चाहिए 


आपने निज  वचनों द्वारा ही, मेरा सारा प्रिय कर दिया 

सीता के निर्लोभी भाव से, हर्षित हुईं अति अनसूया 


लोभ हीनता के कारण ही, तुममें यह आनंद भरा है 

सफल करूँगी उसे अवश्य, मिलकर तुमसे सुहर्ष  हुआ है 


हार, वस्त्र, आभूषण, अंगराग, बहुमूल्य अनुलेपन दिये 

 शोभा नित बढ़ायेंगी तन की , तुम्हारे योग्य ये वस्तुएँ


सदा उपयोग में लाने पर भी,  निर्दोष व शुद्ध रहेंगी 

दिव्य अङ्गराग को अपना, तुम लक्ष्मी सी सुशोभित होगी 


अनसूया की आज्ञा से सीता ने, अति यशस्विनी थी जो 

प्रसन्नता का उपहार समझकर, ग्रहण किए वस्त्र आदि वो 


दोनों हाथ जोड़कर वहाँ वह, बैठी रहीं निकट उन्हीं के

 प्रिय कथा सुनने के हित,  प्रश्न यह पूछा अनसूया ने  


मैंने सुना है श्रीराम ने, स्वयंवर में तुम्हें प्राप्त किया 

कैसे हुआ घटना क्रम वह, सुनना चाहती विवरण सारा 


 धर्मचारिणी अनसूया को, उनके कहने पर सहर्ष ही

सुनिए, माता ! कह सीता ने, निज विवाह की कथा सुनायी


8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 15 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. बहुत बहुत आभार यशोदा जी !

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  3. Replies
    1. स्वागत व आभार !

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  4. बहुत सुन्दर प्रसंग । सादर वन्दे अनीता जी !

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  5. स्वागत व आभार मीना जी !

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  6. बहुत बहुत सुन्दर

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  7. स्वागत व आभार !

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